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सद्धममण्डनम् ।
जो प्रातःकाल, मध्यान्ह काल, संध्याकाल और मध्य रात्रिकी दो घड़ीको छोड़ कर शेष कालमें पढ़े जाते हैं वे उत्कालिक सूत्र हैं और जो दिन रातके पहले और पिछले पहरोंमें ही पढ़े जाते हैं वे कालिक सूत्र कहलाते हैं । इन सभी सूत्रों के पढ़नेमें चौदह तरह के अतिचारोंका त्याग करना शास्त्रमें कहा है। वे अतिचार ये हैं
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"जंवाइद्ध' वच्चामेलियं होणक्खरियं अञ्चक्खरियं पयहोणं विजयहीणं घोसहीणं जोगहीणं सुवदिन दुइ, पडिच्छि अकाले कओसज्झाओ कालेनकओ सज्झाओ असझाए सज्झाइयं सज्झाए नसज्झाहर्य तस्समिच्छामि दुक्कडं ।
( आवश्यक सूत्र )
शास्त्र पढ़ने के चौदह अतिचार होते हैं वे ये हैं
[१] व्याविद्व- विपरीत गूंथी हुई रत्नमालाकी तरह क्रमको छोड़कर व्युत्क्रमसे पढ़ना "व्याविद्ध” कहलाता है । [ २ ] व्यत्यात्रे डित--वार वार पुनरुक्ति करके पढ़ना 'व्यत्यास्म्रति' है । [३] हीनाक्षर-अक्षर हीन पाठ करना हीनाक्षर कहलाता है । [४] अत्यक्षर-अक्षर बढ़ा कर पढ़ना अत्यक्षर नामक अतिचार है । [ ५ ] पद होन-किसी पदको छोड़कर पढ़ना पद होन कहलाता है । [ ६ ] विनय होन -- विनयको छोड़कर पढ़ना विनय हीन है। [७] घोष हीन-उदात्त अनुदात्त आदिसे हीन पाठ करना घोषहीन कहलाता है। [८] योगहीन - अच्छी तरहसे योगोपचार करके न पढ़ना योगहीन कहलाता है। [९] राष्ट्रवदत्त - गुरुसे नहीं दिये हुएका पाठ करनाष्ट्वदत्त है, [१०] दुष्टु प्रतीच्छित दुष्ट अन्तःकरणसे पाये हुएका पाठ करना 'दुष्टुप्रतीच्छित' कहलाता है । [ ११ ] अकाले कृतस्वाध्याय-- जिस उद्देशा आदि पढ़नेका जो काल नहीं है उसमें उसे पढ़ना 'अकाले कृत स्वाध्याय' कहलाता है । [१३] काले न कृत स्वाध्यायजिस उद्देशा आदिके पढ़नेका जो काल है इसमें उसे न पढ़ना, 'काले न कृत स्वाध्याय' है । [१३] अस्वाध्याये स्वाध्यायित-अस्वाध्याय (अनध्याय) में स्वाध्याय करना 'अस्वाध्याये स्वाध्यायित' है ।। [ १४ ] स्वाध्याये न स्वाध्यायित--स्वाध्याय कालमें स्वाध्याय न करना स्वाध्याये न स्वाध्यायित' कहलाता है । ये चौदह शास्त्र पढ़नेके अतिचार हैं इनके प्रयोग हो जानेपर प्रायश्चित्तस्वरूप पाठकको मिच्छामि दुक्कडं देना पड़ता है ।
ये चौदह अतिचार साधुकी तरह श्रावकोंके भी कहे हैं। सब मिलकर ९९ अतिचार श्रावकों होते हैं उनमें ये चौदह अतिचार भी शामिल हैं। भीषण जीने अपनी बारह की ढालमें लिखा है :
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"चौदह अतिचार ज्ञानरा पांच समकित ना जान ।
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