Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

View full book text
Previous | Next

Page 519
________________ अथ सूत्रपठनाधिकारः। (प्रेरक) भ्रम विध्वंसनकार भ्रमविध्वसन पृष्ठ ३६१ पर लिखते हैं "केतला एक कहे गृहस्थ सूत्रमणे तेहनी जिन आज्ञा छै ते सूत्रना अजाण है। अने भगवन्तनी आज्ञा तो साधुनो इज छै पिण सूत्रभणवारी गृहस्थने याज्ञा दीधी नथी। इसका क्या समाधान ? (भ्र० पृ० ३६१) (प्ररूपक) समुच्चय गृहस्थका नाम लेकर श्रावकको भी सूत्र पढ़नेका निषेध करना स्वार्थ तथा अज्ञानका परिणाम है क्योंकि शास्त्रमें शास्त्र पढ़नेके चौदह अतिचार साधु और श्रावक दोनोंको कहे हैं यदि श्रावकको शास्त्र पढ़नेका अधिकार ही नहीं है तो फिर उसके लिये शास्त्र पढ़नेके अतिचारोंके कहनेकी क्या आवश्यकता है ? अतः एकान्त रूपसे श्रावकको शास्त्र पढ़नेका निषेध करना अज्ञान मूलक है। शास्त्रोंका भेदके साथ चौदह अतिचार बताये जाते हैं। नन्दी सूत्रमें शास्त्रोंका भेद बतलानेके लिये यह पाठ आया है _ "अहवा तं समारओ दुविहं पण्णत्तं तंजहा-अङ्गपविट्ठ अजवाहिरंच से किंतं अङ्ग वाहिरं? अगवाहिरं दुविहं पण्णत्तं तंजहाआवस्सयंच आवस्स्यवइरित्तंच । सेकित्तं आवस्सयं ? आवस्सयं छव्विहं पण्णतंजहा-सामाइयं जाव पच्चक्खाणं सेतं आवस्सयं । सेकित्तं आवस्सयवइरित्तं आवस्सयवइरित्तं दुविहं पण्णत्तं तंजहाकालियंच उक्कालियंच" (नन्दी सूत्र) अथ : अथवा प्रकारान्तरसे गमिक और अगमिक शास्त्रके दो भेद हैं। एक अंग प्रविष्ट और दूसरा अंग बाह्य अंग वाह्य भी दो प्रकारके होते हैं एक आवश्यक और दूसरा आवश्यकसे भिन्न आवश्यकके छः भेद हैं सामायकसे लेकर प्रत्याख्यान प-न्त । आवश्यकसे भिन्न भी दो तरहके होते हैं कालिक और उत्कालिक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562