Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 527
________________ सूत्रपठनाधिकारः । ४७७ “तथा वहु श्रुतं सूत्र यस्यासो वहु श्रुतः तथा वहुगगमोऽर्थरूपोयस्यस वहवागमः । जघन्येनाचारकल्पधरो निशीथाध्ययनसूत्रार्थधर इत्यर्थः । जघन्यत आचार कल्पग्रहणादुष्कर्षतो द्वादशांगविदिति” अर्थात जिसने बहुत सूत्रोंका अध्ययन किया है वह बहुश्रुत है और जो बहुत अर्थरूप आगमका ज्ञाता है वह बहूवागम कहलाता है । तात्पर्य यह है कि तीन वर्षकी दीक्षा वाला जो साधु, जधन्य निशीथ सूत्र और उसका अर्थ जानता हो और उत्कृष्ट द्वादशांगधारी हो वह आचार्य्य बनाया जा सकता है। यहां टीका और मूलपाठ तीन वर्षकी दीक्षावाले साधुको उत्कृष्ट द्वादशांगधारी कहा है इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि व्यवहार सूत्र में तीन वर्ष दीक्षा लेनेके पश्चात निशीथ सूत्र पढ़ने और १० वर्ष दीक्षा लेनेके बाद जो भगवती सूत्र पढ़ने का विधान किया है वह एकांतरूपसे नहीं है। विशेष योग्यतावाले साधु, तीन वर्षके अन्दर ही उत्कृष्ट द्वादशाङ्गधारी भी हो सकते हैं अतः व्यवहार सूत्रका नाम लेकर श्रावकको शास्त्र पढ़नेका निषेध करना अज्ञानमूलक है । + बोल ४ ( प्रेरक ) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ३६४ पर निशीथ सूत्र उद्देशा १९ का मूल पाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं: "जे आचार्य उपाध्यायनी अणदीधी वांचणी आचरे तथा आचारताने अनुमोदे तो चौमासीदण्ड आवे तो गृहस्थ आपरे मते सूत्र भणे ते तो आचार्य्यरी अणthat aiचणीछे तेहनी अनुमोदना किया चौमासी दण्ड आवे तो जे अगदीधां वांचणी गृहस्थ आचरे तेहने धर्म किम कहिये । (भ्र० पृ० ३६४ ) इसका क्या समाधान ? ( प्ररूपक ) गुरुसे पढ़े विना अपने मनसे शास्त्र पढने पर "सुष्ट वदिन्न" नामक ज्ञान का अतिचार होता है उम्रकी निवृत्तिके लिये, निरतिचार शास्त्राध्ययन करनेवाले श्रावक, गुरुसे पढ़कर ही शास्त्रका अध्ययन करते हैं। यह "सुष्ट वदिन्न" नामक अतिचार, साधु की तरह श्रावक भी कहा है इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि श्रावकको भी गुरुसे शास्त्र पढ़नेका अधिकार है। यदि श्रावकको शास्त्र पढ़नेका अधिकार ही न होता तो उसको "सुष्ट वदिन्न" नामक अतिचार क्यों आता ? अतः निशीथ उद्देशा १९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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