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सूत्र पठनाधिकारः ।
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(प्ररूपक)
वाई सूत्र और सुगडांग सूत्रमें जैसे श्रावकको अर्थका ज्ञाता कहा है उसी तरह समवायांग सूत्र और नन्दी सूत्रमें श्रावकको सूत्रों का ज्ञाता भी कहा है । वह पाठ यह है :- “सुयपरिग्गहिया तवोवहाणाइ” अर्थात् श्रावक सूत्रको पढ़े हुए और उपधान नामक तप करने वाले होते हैं। यहां प्रत्यक्ष श्रावकको सूत्र पढ़नेवाला कहा है इसलिये श्रावकको सुत्र पढ़ने का अधिकार स्पष्ट सिद्ध होता है तथापि उवाई और सुयगडांग का नाम लेकर श्रावकको शास्त्र पढ़नेका अनधिकार बताना एकान्त मिथ्या है । उवाई और सुगडांग सूत्र में श्रावकको अर्थका ज्ञाता कहा है इसका अभिप्राय यह नहीं हो सकता कि वे अर्थ जानने ही अधिकारी हैं सूत्र पढ़नेके अधिकारी नहीं हैं किन्तु उवाई और
गांग सूत्र से अर्थ जाननेके और समत्रयांग सूत्र से सूत्र पढ़नेके श्रावक अधिकारी सिद्ध होते हैं अतः श्रावक को सूत्र पढ़नेका अनधिकारी बताना अज्ञान है । इसी तरह सुयगडांग सूत्रके ११ वें अध्ययनकी २४वीं गाथा लिखकर भ्रमविध्वंसनकारने जो यह लिखा है कि "आत्म साधु इज शुद्ध धर्मनो परुपण हार छै” यह भी मिथ्या है क्योंकि उक्त गाथामें श्रावकको शुद्ध धर्मका उपदेशक होना वर्जित नहीं किया है और किया भी नहीं जा सकता क्योंकि उवाई सूत्र में श्रावकको “धम्मक्खा३" कह कर धर्मोपदेशक होना साफ साफ बतलाया है और भ्रमविध्वंसनकारने भी भ्र० पृ० २३४ पर श्रावकको धर्मोपदेशक माना है । जैसे कि वे लिखते हैं- “धर्म श्रुत चारित्र रूपने संभलावे ते धर्मख्यात कहीजै" यह लिखकर स्वयं भ्रमविध्वंसनकारने भी श्रावकको धर्मोपदेशक होना स्वीकार किया है तथापि सुगडांग सूत्रकी गाथाका नाम लेकर श्रावकको धर्मोपदेशक होनेका निषेध करना इनका शास्त्र और अपने कथनसे भी विरुद्ध है ।
( बोल ६ समाप्त )
( प्रेरक )
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ३६८ पर सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र की तीसरी ओर चौथी गाथा लिख कर उनकी समालोचना करते हुए लिखते हैं
"अथ इहां कह्यो – ए सूत्र, अभाजनने सिखावे ते कुल गण संघ वाहिरे ज्ञानादिक रहित कह्यो । अरिहंत गणधर स्थविरनी मर्य्यादानो लोपहार कह्यो । जो साधु अभाजन
सिखावण तो गृहस्थतो प्रत्यक्ष पांच आश्रवनो सेवणहार अभाजनइज छै तेहने सिखायां धर्मकिम हुवे इत्यादि लिखकर श्रावकको एकान्तरूपसे अभाजन कायम करके उसको शास्त्र पढ़ानेका अनधिकारी बतलाते हैं ।
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