Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 537
________________ (अथ अल्पपाप वहुनिर्जराधिकारः) (प्रेरक) भगवती शतक ८ उद्देशा ६ के मूलपाठमें साधुको अप्रासुक और अनेषणिक आहार देनेसे अल्पतर पाप कर्म और बहुतर निर्जरा होना लिखा है उसका अर्थ करते हुए भ्रमविध्वंसनकार लिखते हैं: "तेहने अल्प पाप ते पापतो नहींज छ अने हर्ष करी दीधां बहुत घगी निर्जरा हुई" (भ्र० पृ० ४४९) इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक) भगवती सूत्रका वह मूलपाठ टीकाके साथ लिख कर इसका समाधान दिया जाता है वह पाठ यह है: "समणोवासएणं भन्ते ! तहाल्वं समणं वा माहनं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेमाणस्त किंकजइ गोयमा ! वहुतरिया से निजरा कजइ अप्पतराए में पाव कम्मे कजई" (भगवती शतक ८ उद्देशा ६) (टीका) ___ 'बहुतरियत्ति पाप कर्मापेक्षया 'अल्पतराए'त्ति अल्पतरं निर्जरापेक्षया । अयमों गुगवतेपात्रायापासुकादिद्रव्यदाने चारित्रकायोपष्टम्भो जीवघातो व्यवहारतस्तचारित्रवाधाच भवति ततश्च चारित्रकायोपष्टम्भान्निर्जरा जीवधातादेश्च पाकर्म तत्रच स्वहेतुसामर्थ्यात् पापापेक्षया बहुतरा निर्जरा निर्जरापेक्षयाचाल्पतरं पापं भवति । इहच विवेचकाः मन्यते असंस्तरणादिकारणतएवा प्रासुकादि दाने बहुतरा निर्जरा भवति नाकारणे यदुक्तं "संथरणम्मि असुद्ध दोण्ह विगेण्हत दितयाणहियं आउर दिट्टतेणं तंचेव हियं मसंथरणेत्ति" अन्येत्वाहुरकारणेऽपि गुणवत्पात्रायाप्रासुकादिदाने परिणामवशात् बहुतरा निर्जराभवति अल्पतरंच पापं कर्मेति निर्विशेषणत्वात्सुत्रस्य परिणामस्यच प्रमाणत्वात् आहच-"परम रहस्स मिसीणं समत्त गणिपिग किरिय साराणं । परिणामय पमाणं निच्छयमवलंब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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