Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 538
________________ ४८८ सद्धममण्डनम्। - माणाणे' यच्चोच्यते संथरणमि असुद्ध मित्यादिनाऽशुद्ध द्वयोरपि दागृप्रहीत्रो रहितायेति तद्ग्राहकस्य व्यवहारतः संयमविराधनादायकस्यच लुब्धकदृष्टान्तभावित्वेनवा, ददत: शुभाल्यायुष्कता निमित्तत्वात् । शुभमपिचायुरल्प महितं विवक्षया, शुभायुष्कता निमित्तं चा प्रासुकादि दानस्य अल्पायुष्कता प्रतिपादकसूत्रे प्राक्चर्चितं यत्पुनरिहतत्वं तत्केवलिगम्यम्' अर्थ : हे भगवन् ! तथाविध श्रमण और माहनको अप्रासुक अनेषणिक आहार देनेवाले श्रमणोपासकको क्या फल होता है ? (उत्तर ) हे गोतम ! अल्पतर पाप और बहुतर निर्जरा होती है। यह मूलपाठ का अर्थ है । टीकाका अर्थ निम्नलिखित है पाप कर्मकी अपेक्षा बहुत अधिक निर्जरा होती है और निर्जराकी अपेक्षा पाप कर्म बहुत थोड़ा होता है । इसका आशय यह है कि गुणवान पात्रको अप्रासुक अन्नादि दान देनेसे उसके चारित्र और शरीरको सहायता प्राप्त होती है और व्यवहारसे चारित्र की वाधा और जीवको विराधना होती है अतः चारित्र और शरीरकी सहायता होनेसे निर्जग होती है और जीव विराधना भादि होनेसे पाप होता है। चारित्र और शरीरकी सहायता बहुत अधिक होती है और जीव विराधना बहुत थोड़ी होती है इस लिये अपने कारणानुसार बहुतर निर्जरा और निर्जराकी अपेक्षासे अल्पतर पाप होता है । इस विषय में विवेचक लोगोंका मत यह है निर्वाह नहीं होने आदि कारणोंसे अप्रासुक वस्तुका दान करना बहुतर निर्जराका हेतु होता है अन्यथा नहीं, जैसे किसी आचार्य्यने कहा है-निर्वाह होनेपर अशुद्ध आहार देना और देना दाता और ग्राहक दोनोंके अहितके लिये होता है परन्तु रोगीके दृष्टान्त से निर्वाह नहीं हो सकनेपर वह दान दोनोंका हितकारक होता है। इस विषयमें दूसरे लोगोंका कहना यह है कारण नहीं होनेपर भी गुणवान पात्रको अप्रासुकादि आहार देनेसे बहुत निर्जरा और अल्पतर पाप होता है क्योंकि मूल सूत्रमें कारण विशेषका उल्लेख नहीं किया गया है तथा गुणवान पात्रको श्रद्धापूर्वक अप्रासुक आहार देने वाले श्रमणोपासकका परिणाम शुद्ध है उस परिणामको शुद्धिके कारण बहुतर निर्जरा, और अशुद्ध अन्न होनेके कारण अल्पतर पाप होता है। जैसे आचार्यों ने कहा है :- परम रहस्यको जानने वाले सम्पूर्ण द्वादशांग के सारका ज्ञाता, निश्चय नयका अवलम्बन करने वाले ऋषियोंने (पाप और पुण्य आदिके विषयमें ) परिणामको ही प्रमाण माना है। अतः विना कारण भी गुणवान पात्रको असूझता आहार देनेसे बहुतर निर्जरा और अल्पतर पाप होना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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