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सूत्रपठनाधिकारः।
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इस पाठमें शील रहितको श्रुत सम्पन्न होना कहा है। यदि साधुसे इतरको शास्त्र पढ़नेका अधिकार नहीं है तो शील रहित पुरुष श्रुतसम्पन्न कैसे हो सकता है ? अतः श्रावकको शास्त्र पढ़नेका निषेध करना शास्त्र विरुद्ध समझना चाहिये ।
(बोल ७ समाप्त) (प्रेरक) निशीथ सूत्र उद्दशा १९ में पाठ आया है कि
"जेभिक्खू पासत्यं वायइ वायंतं वा साइजइ" जेभिक्ख पासत्वं पडिच्छइ पडिच्छतंवा साइजई"
अर्थात जो साधु पासत्थको पढ़ाता है या पढ़ाते हुए को अच्छा जानता है। जो साधु पासत्थसे शास्त्र पढ़ता है या पढ़ते हुएको अच्छा जानता है उसे प्रायश्चित्त आता है । इसी तरह उसन्न कुशील आदिके लिये भी पाठ आया है इन पाठोंके अनुसार जब कि परिग्रह रहित स्त्री आदिका त्यागी पासत्थ आदिको भी शास्त्र पढ़ानेका निषेध है तब फिर श्रावक तो परिग्रही और स्त्री आदिको रखने वाला होता है उसको शास्त्र पढ़ने का अधिकार कैसे हो सकता है ?
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
उसन्न पासत्थ और कुशील मादि, केवल साधु ही नहीं होते श्रावक भी होते हैं इस लिये निशीथ सूत्र उद्देशा १९ के मूलपाठमें जो साधु और श्रावक, उसन्न पासत्थ
और कुशोल आदि हैं उनको शास्त्र पढ़ानेका निषेध किया है परन्तु जो साधु और श्रावक उसन्न पासत्य और कुशील आदि नहीं हैं उनको शास्त्र पढ़ानेका निषेध नहीं है अतः निशीथके उक्त मलपाठका नाम लेकर श्रावकको शास्त्र पढ़ाने का निषेध करना असंगत है। भगवती सूत्र शतक दश उद्देशा चारमें श्रावकों को भी उसन्न पासत्थ और कुशील आदि कहा है वह पाठ यह है :
____ "तएणं ते तायतिसं सहाया गाहावई समणोवासगा पुग्विं उग्गा उग्गविहारी संविग्गा संविग्गविहारी भवित्ता तवोपच्छा पासत्था पासत्थ विहारी उसन्ना औसन्नविहारी कुशीला कुशील विहारी अहाच्छन्दा अहाच्छन्द विहारी बहुइ वासाई समणोवासग परियाय पाउणंति"
(भ० श० १० उ०४)
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