Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 526
________________ सद्धममण्डनम् (प्रेरक) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ३६२ पर व्यवहार सुत्रकी साक्षी देकर लिखते हैं "दश बर्ष दीक्षा लियां साधुने कल्पे भगवती सूत्र भणिवो ए साधुने पिण मर्यादा सूत्र भणवारी कही जे तीन वर्षा दीक्षा लियां पछे निशीथ सूत्र भणवो कल्पे अने तीन वर्ष दीक्षा लियां पहिल तो साधुने पिण निशीथ सूत्र भणवो न कल्पे अने तीन वर्ष पहिले साधु निशीथ सूत्र भणे तेहनी जिन आज्ञा नहीं तो गृहस्थ सूत्र भणे तेहनी आज्ञा किम देवे" (भ्र० पृ० ३६२) इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक) ___ व्यवहार सूत्रमें, तीन वर्ष दीक्षा लेनेके वाद निशीथ सूत्र पढ़नेका और दश वर दीक्षा लेनेके बाद जो भगवती सूत्र पढ़नेका विधान किया है वह सबके लिये नहीं है क्योंकि विशिष्ट योग्यतावाले मुनिको तीन वर्णकी दीक्षाके बाद ही शास्त्रमें जघन्य आचारांग, निशीथ और उत्कृष्ट द्वादशांगको पढ़ने वाला बहुश्रुत और वह वागम कहा है। वह पाठ यह है: "तिवास पजाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पण्णत्तिकुसले संग्गहकुशले उवग्गहकुशले अक्खयायारे असवलायारे अभिन्नायारे असंकिलिहायारचरिते वहुस्सुए वह वागमे जहण्णेणं आयारकप्पधरे कप्पइ उवज्झायताए उद्दिसित्तए ।, (व्यवहार सुत्र उ०३) अर्थ : तीन वर्षकी दीक्षा पर्यायवाला जो श्रमण निनथ, आचार कुशल, संग्रह कुशल, उपग्रह कुशल, अक्षताचार, (अखंडित आचारपाला) अशबलाचार अभिन्नाचार, असंक्लिष्टाचार, बहुश्रुत और वह वागम है अर्थात् अल्पसे अल्प आचारांक, दिखीथ, और उत्कृष्ट द्वादशांगधारी है उसे आचार्य पद देना कल्पता है। इस पाठमें तीन वर्षकी दीक्षावाले साधुको बहुश्रुत और वह वागम, कहा है इन का अर्थ करते हुए टीकाकारने लिखा है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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