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सद्धर्ममण्डनम् । सत्य वचन जाणे । ए तो प्रत्यक्ष साधुने इज सूत्र भणवारी आज्ञा कही पिण गृहस्थने सूत्र भणवारी आज्ञा नहीं । ते मांटे श्रावक सूत्र भणे ते आपरे छांदे पिण जिन आज्ञा नहीं" (भ्र० पृ० २६१)
इसका क्या उत्तर ? (प्ररूपक)
प्रश्नव्याकरण सूत्रका मूलपाठ लिख कर इसका समाधान किया जाता है। वह पाठ यह है:
"तं सच भगवं तित्थयरसुभासियं दसविहं चोद्दसपूवीहिं पाउडत्यविदितं महरीसीणयसमयप्पदिन्नं देवेन्दनरेन्दभासियों वेमाणियसाहियं महत्थं मंतोसहिविज्जासाहणत्यं"
(प्रश्न व्याकरण सूत्र) (टीका)
तमिति यस्मादेवं तस्मात् सत्यं द्वितीयं महाव्रतम् भगवदूभट्टारकतीर्थङ्करसुभाषितं जिनैः सुष्टूक्त दशविधं दशप्रकारं जनपदसम्मतसत्यादिभेदेन दशवैकालिकादि प्रसिद्ध चतुदशपूर्विभिः प्राभृतार्थवेदितं पूर्वगतांशविशेषाभिधेयतयाज्ञातं, महर्षीणांच समयेन सिद्धान्तेन “पइन्न" त्ति प्रदत्त समयप्रतिज्ञावा समाचाराभ्युपगमः। पाठान्तरे "महीरिसीसमयपइन्नचिन्न" ति महषिभिः समय प्रतिज्ञा सिद्धान्ताभ्युपगम: समाचागभ्युपगमो वेति चरितं यत् तत्तथा। देवेन्द्रनरेन्द्रर्भाषित: जनानामुक्तोऽर्थः पुरुपार्थ स्तत्साध्यो धर्मादिर्यस्य तत्तथा। अथवा देवेन्द्रनरेन्द्राणां भासित: प्रतिभासितोऽ र्थः प्रयोजनं यस्य तत्तथा । अथवा देवेन्द्रादीनां भाषिताः अर्थाः जीवादयो जिनवचन रूपेण येन तत्तथा। तथा वैमानिकानां साधितं प्रतिपादितमुपादेयतया जिनादिभिर्य तत्तथा । वैमानिकैर्वा साधितं कृत मासेवितं समर्थितंवा यत्तत्तथा । महार्थ महाप्रयोजनम एतदेवाह मन्त्रौषधिविद्यानां साधनमर्थः प्रयोजनं यस्य तद्विना तस्याभावात तत्तथा । अर्थ :
सत्य, दूसरा महाव्रत है इसे तीर्थंकरोंने दश प्रकारका कहा है।
जनपदसम्मत सत्यादिके भेदसे दश प्रकारका सत्य, दश वैकालिक आदि सूत्रों में प्रसिद्ध है। इसे चौदह पूर्वधारियोंने पूर्वान्तर्गत प्रभृत नामक श्रुत विशेषसे जाना है। · बड़े बड़े ऋषियोंके सिद्धान्तसे यह सत्य दिया गया है अथवा बड़े बड़े ऋषियोंने सत्य भाषणकी प्रतिज्ञा की है । अथवा पाठान्सरके अनुसार, बड़े बड़े ऋषियोंने सत्य भाषणकी
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