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पुण्याधिकारः।
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है यह तुल्यता बतलानेके लिये यहां वा शब्द दिया गया है। श्रमण नाम साधुका है। और स्थूल प्राणातिपातसे सिवृत्त होकर जो दूसरेको नहीं मारनेका उपदेश करता है वह माहन कहलाता है । अथवा ब्राह्मणका नाम माहन है। क्योंकि उसमें देश विरति होती है और जिसमें देश विरति होती है वही यहां ब्राह्मग समझा जाता है। शेष टीका का अर्थ मूल पाठके अर्थमें मिलाकर दे दिया गया है। ___यहां जो टोकाकार यह लिखते हैं कि इस पाठमें श्रमण माहन शब्दके साथ वा शब्द जोड़नेका यह भाव है कि चाहे श्रमणसे आर्य धर्म सम्बन्धी सुवाक्य सुना जाय चाहे माहनसे सुना जाय दोनोंसे एक समान ही स्वर्ग प्राप्ति होती है इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि श्रमण दूसरा है और माहन दूसरा है। इस लिये श्रमण माहन इन दोनोंका एक साधु ही अर्थ बतलाना भी मिथ्या समझना चाहिये।
इति पुण्याधिकारः।
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