________________
( प्रेरक )
अथ आश्रवाधिकारः ।
ara किसे कहते हैं, वह जीव है या अजीव है ?
( प्ररूपक )
आत्म रूपी तालाब में कर्म रूपी जल जिसके द्वारा प्रवेश करता है उसे आश्रव कहते हैं। आश्रव, जीव भी है और अजीव भी है। ठाणाङ्ग सूत्रकी टीकामें टीकाकार Heart लक्षण और भेद बतलाते हुए यह लिखा है :
“आश्रवन्ति प्रविशन्ति येन कर्माण्यात्मनीत्याआश्रवः कर्मवन्ध हेतु रितिभावः । सचेन्द्रिय कषाया व्रत क्रिया योग रूपः क्रमेण पंच चतुः पंच पन्चविंशति त्रिभेदः उक्तरच “इन्द्रिय कसाय अव्त्रय किरिया पण चउर पंच पणुवीसा जोगा तीन्नेव भवे आसव भेआओ वयाला" इति तदेवमयं द्विचत्वारिंशद्विधोऽथवा द्विविधो द्रव्य भाव भेदात् । तत्र द्रव्याश्रवो यज्जलान्तर्गत नवादौ तथा विधच्छिद्र जैल प्रवेशनम् भावाश्रवस्तु जीव नावीन्द्रियादिच्छिद्रतः कर्म जल संचय इति सचाश्रव सामान्यादेक एव"
यह ठाणाङ्ग सूत्रके “एगे आसवे" इस पाठकी टीका है। इसका अर्थ यह है
जिसके द्वारा आत्मामें कर्म प्रवेश करता है उसे "आश्रव" कहते हैं जो कर्मवन्ध का हेतु है वह आश्रव है। पांच इन्द्रिय, चार कषाय, पांच अत्रत, पचीस क्रिया, तीन योग, ये बयालीस आश्रवके भेद हैं । ये वेयालीस व्यश्रव, भाव व्याश्रव कहलाते हैं इनसे अलग द्रव्याश्रव भी होता है । छिद्रोंके द्वारा नाव आदिमें जलका प्रवेश होना द्रव्य मानव है । पूर्वोक्त ४२ वस्तुओंके द्वारा जीव रूपी नौकामें कर्म रूपी जलका प्रवेश होना भाव व्यव है।
यहां टीकाकारने भाव आश्रवके वेयालीस भेद बतलाये हैं इनमें पचीस प्रकारकी क्रिया भी शामिल हैं। ये क्रियाएं केवल जीवकी ही नहीं किन्तु अजीवकी भी बतलाई गई हैं इस लिये आश्रव अजीव भी है ।
उक्त टीका में इन्द्रियों को आश्रव बतलाया है । इन्द्रियां दो तरह की हैं द्रव्य इन्द्रिय और भाव इन्द्रिय, द्रव्य इन्द्रिय अजीव हैं और भाव इन्द्रिय जीव हैं। इस लिये
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com