Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 513
________________ जीवभेदाधिकारः। ४६३ "तेसिंग अन्ने जीवा किं सन्नी असन्नी ? गोयमा ! सन्नीवि असन्नोवि" इस पाठमें प्रथम नरकके जीवोंको संज्ञी और असंज्ञी दोनों ही तरहका कहा है। एवं इसी जीवाभिगम सूत्रमें नारकि जीवोंका ज्ञान के विषयमें प्रश्न करने पर भगवान्ने यह उत्तर दिया है "जे अण्णाणी ते अत्ोगइया दुअण्णाणी अत्ोगइया ती अ. ण्णाणी । जेय दुअण्णाणी ते णियमा महअण्णाणी सुयअण्णाणोय" (जीवाभिगम सूत्र) (टीका) ये नारका असंझिनस्तेऽपर्याप्तावस्थायां दू यज्ञानिन: पर्याप्तावस्थायान्तु ज्यशानिनः" _अर्थात् जो नारकि जीव असंज्ञी हैं वे अपर्याप्तावस्थामें दो अज्ञानवाले होते हैं और पर्याप्तावस्थामें तीन अज्ञानवाले होते हैं। जो नारकि दो अज्ञानवाले होते हैं वे नियमसे मति अज्ञान और श्रुत अज्ञानवाले होते हैं। यह उक्त मूलपाठ और उसकी टीकाका मिलित अर्थ है। . इस मूलपाठमें असंज्ञी नारकि जीवको दो अज्ञानवाला कहा है और टीकाकारने स्पष्ट लिखा है कि असंज्ञी नारकि अपर्याप्तावस्थामें दो अज्ञानसे युक्त होते हैं यहां टीकाकारने तो नारकि जीवोंमें असंज्ञीके अपर्याप्त नामक भेदका स्पष्ट रूपसे प्रतिपादन किया है इसलिये नारकि जीवोंमें असंज्ञीके अपर्याप्त नामक भेदको न मानना शास्त्र विरुद्ध समझना चाहिये । इस पाठके आगे भुवनपति और व्यन्तर देवोंके लिये भी इसी तरहका पाठ आया है इसलिये भुवनपति और व्यन्तर देवोंमें भी असंझीके अपर्याप्त नामक मेद होना स्पष्ट सिद्ध होता है तथापि उसे न माननां अपने अज्ञानका परिचय देना समझना चाहिये। (बोल १) (प्रेरक) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ३३७ पर पन्नावणा सूत्र पद १५ उद्देशा १ का मूलपाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं "इहां कह्यो मनुष्यना दो भेद । सन्नीभून ते विशिष्ट अवधिज्ञान सहित मनुष्य" इत्यादि लिख कर आगे लिखते हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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