________________
जीवभेदाधिकारः ।
४६५
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
वालक और वालिका, मनोयुक्त होते हैं मनोविकल नहीं होते इसलिये वास्तवमें वे संज्ञो ही हैं असंज्ञी नहीं हैं परन्तु पन्नावगा सूत्रमें विशिष्ट ज्ञान रहित होनेसे उन्हें असंही कहा है। अतएव शास्त्रमें उत्तानशय बालक, और वालिकाओंको संज्ञी कह कर लिखा है परन्तु असंज्ञीसे निकल कर नरक, भुवनपति और व्यन्तर देवोंमें उत्पन्न हुए जीवोंको कहीं भी संज्ञी नहीं कहा है इसलिये छोटे बालक और बालिकाका दृष्टांत देकर उक्त जीवोंमें असंज्ञीके भेदका निषेध काना अज्ञान मूलक है । यदि असंज्ञोसे मरकर नरक, भुवनपति और व्यन्तर देवोंमें उत्पन्न होने वाले जीवको किसी जगह भी शास्त्र में संज्ञी कह कर बतलाया होता तो कदाचित् छोटे बालक और बालिकाके विषयमें आये हुए पन्नावणा सूत्रके मूलपाठका दृष्टांत देकर उक्त जीवोंमें असंज्ञीके अपर्याप्त भेदका निषेध किया जा सकता था परन्तु कहीं भी असंज्ञीसे मर कर नरक आदि में उत्पन्न होने वाले जोव को संज्ञो नहीं कहा है अत: उनमें असंज्ञी के भेद का निषेध करना मिथ्या है। .
( बोल ३) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ३४० पर दश वैकालिक सूत्रकी गाथा लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं।
"अथ इहां ८ सूक्ष्म कह्या धूवर प्रमुखनी सूक्ष्म स्नेह न्हाना फल कुंथुआ उत्तिंग कीडी नागरा नीलग फूलण वीज खसखसादिकाना न्हाना अंकुर किडी प्रमुखना अण्डा सूक्ष्म कह्या । ते न्हाना मांटे सूक्ष्म छै पिण सूक्ष्मरो जीवरो भेद नहीं तिम नेरइया अने देवताने असन्नी कह्या पिण असन्नीरो भेद नहीं" (भ्र० पृ० ३४०)
इसका क्या उत्तर ? (प्ररूपक)
किडी आदि जीव, शास्त्रमें जगह जगह, त्रस जीवोंमें गिने गये हैं सूक्ष्म जीवोंके भेदमें नहीं गिने गये हैं इसलिये छोटा होनेके कारण उन्हें दशवैकालिक सूत्रमें सूक्ष्म कहा है परन्तु यह दृष्टांत असंझीसे मर कर नरक, भुवनपति और व्यन्तर देवोंमें उत्पन्न होने वाले जीवोंमें नहीं घटता क्योंकि असंज्ञीसे मर कर नरक भुवनपति, और व्यन्तर देवोंमें उत्पन्न होने वाले जीवको कहीं भी संज्ञी नहीं कहा है किंतु सर्वत्र असंझी ही कहा है
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com