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आश्रवाधिकारः।
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हे गोतम ! आत्मा आठ प्रकारका है [१] द्रव्यात्मा [ २ ] कषायात्मा [३] योगात्मा [ ] उपयोगात्मा [५] ज्ञानात्मा [६.] दर्शनात्मा [ . ] चारित्रात्मा [ 0] वीर्यात्मा।
यहां आठ प्रकारका आत्मा कहा गया है। इनमें कषाय, और योग क्रमशः चतुःस्पी और अष्टस्पर्शी पुद गल हैं और दोनों ही रूपी हैं इसलिये आत्मा रूपी भी सिद्ध होता है। कषाय और योग रूपी हैं इसलिये कषायाश्रव और योगाश्रव भी रूपी हैं अत: आश्रत्रको एकान्त अरूपी मानना सर्वथा शास्त्रसे प्रतिकूल समझना चाहिये।
बोल १५ वां समाप्त
भ्रमविध्वंसनकार भ्रम० पृष्ठ ३१५ पर लिखते हैं कि
ते मांटे कषाय अने योग आत्मा कही ते माव कषाय भाव योगने कह्या छै ।। भाव काय तो आश्रव छै।"
इनके कहनेका तात्पर्य यह है कि उक्त भगवती सूत्र के मूलपाठमें जो कषाय और योगको आत्मा कहा है वह भाव कषाय भाव योग समझना चाहिये । भाव कषाय ही माश्रय है और वह अरूपी है इसलिये माश्रव अरूपी है।
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
भगवती सूत्र शतक १२ उद्देशा १० का मूलपाठ १५ वें वोलमें लिख दिया गया है उस पाठमें सामान्य रूप से लिखा है कि "कषाय और योग आत्मा हैं।" भाव कषाय और भाव योग आत्मा हैं ऐसा वहां नहीं लिखा है इसलिये भाव कषाय और भाव योग को आत्मा मान कर द्रव्य कषाय और द्रव्य योगको आत्मा न मानना भ्रमविध्वंसनकार का अज्ञान है। उस पाठको टीका और टवामें भी नहीं कहा है कि "भाव कषाय और भाव योग ही आत्मा हैं" तथा दूसरी जगह भी कषाय और योगका द्रव्य भाव रूप भेद नहीं किया गया है अतः भ्रमविध्वंसनकार की पूक्ति कल्पना अप्रामाणिक और मिथ्या है।
यदि कोई कहे कि "कषाय और योग क्रमश: चतुःस्पशी और अष्टस्पर्शी रूपी हैं, वे आत्मा नहीं हो सकते क्योंकि आत्मा अरूपी है" तो यह ठीक नहीं है। भगवती आदि सत्रोंका प्रमाण देकर यह बतला दिया गया है कि संसारी आत्मा रूपी भी होता है इसलिये कषाय और योगके क्रमशः चतुःस्पर्शी और अष्टस्पर्शी रूपी होने पर भी आत्मा होनेमें कोई सन्देह नहीं है।
(बोल १६ वां समाप्त)
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