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सद्धर्ममण्डनम् ।
पुरुषको उक्त बातें समझ न पड़े तो उसे पक्षपात रहित होकर भगवती सूत्रोक्त वाक्यानुसार अपनी आत्माको पवित्र करना चाहिये।
"तमेवसच निःसंकं जं जिणेहिं पव्वएइयं" अर्थात् जिनवरोंने जो कहा है वही सत्य है उसमें थोड़ी भी शंका नहीं है । ऐसी भावना रखनेसे भी पुरुष भगवानकी आज्ञाका आराधक हो सकता है ।
( बोल ५ वां समाप्त)
इति नव तत्व विचारः।
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