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देश हेतुः । तत्परिणामश्चाभवक्षयादिति सचनरकगत्यादिश्चतुर्विधः गतिपरिणामेच सत्येवेन्द्रिय परिणामो भवतीति तमाह “इन्दिय परिणामे" त्ति सचश्रोत्रादिभेदात्पंचधा इन्द्रिय परिणतौ चेष्टानिष्टविषयसम्बन्धाद्रागद्वेष परिणति रिति तदनंतरं कषाय परिणाम उक्तः सच क्रोधादिभेदाच्चतुर्विधः । कषाय परिणामेच सति लेश्या परिणतिर्नतु लेश्या परिणतौ कषाय परिणतिः येन क्षीण कषायस्यापि शुक्ल परिणतिर्देशोन पूर्वकोटिं यावद्भ• वति यतउक्तम्" मुहुत्तद्ध तु जहन्ना उक्कोसा होई पुग्व कोडीओ नवहिं वरिसेहिं उणा नायच्वा शुकलेस्साय ( शुक्ल लेश्याया जघन्यास्थितिः मुहूर्त्ता नववर्षोना पूर्व कोटी उत्कृष्टा -ज्ञावन्या भवति ) अतो लेश्या परिणाम उक्तः । सच कृष्णादिभेदात् षोढेति । अयश्व योग परिणामेति भवति यस्मान्निरुद्धयोगस्य लेश्या परिणामोऽपैति यतः समुच्छिन्नक्रिय ध्यानमलेश्यस्य भवतीति लेश्यापरिणामानन्तरं योगपरिणाम उक्तः सचमनोवाक्काय भेदात्रिधेति । संसारिणाञ्च योगपरिणतावुपयोग परिणति भवतीति तद्नंतरमुपयोग परिणाम उक्तः सच साकारानाकार भेदाद्विधेति । सतिचोपयोगपरिणामे ज्ञानपरिणामोऽतस्तदनंतरमसायुक्तः । सचाभिनिवोधिकादि भेदात्पञ्चधा तथा मिथ्यादृष्टे ज्ञानमप्यज्ञानमित्यज्ञान परिणामो मत्यज्ञानश्रुताज्ञानविभंग ज्ञानलक्षणस्त्रिविधोऽपि विशेषग्रहण साधर्म्याज्ञान परिणाम ग्रहणेन गृहीतो द्रष्टव्य इति । ज्ञानाज्ञानपरिणामेचसति सम्यक् - त्वादिपरिणतिरिति ततोदर्शन परिणामउक्तः सचत्रिधा सम्यक्त्वमिथ्यात्वमिश्रभेदात् । सम्यक्त्वे सति चरित्रमिति ततस्तत्परिणामउक्तः । सच सामायिकादिभेदात्पंचधेति । स्त्र्यादिवेद परिणामे चारित्र परिणामो नतुचारित्रपरिणामे वेदपरिणतिर्यस्मादवेदकस्या यथाख्यात चारित्र परिणति ष्टेति चारित्र परिणामान्तरं वेद परिणाम उक्तः । सचस्त्रयादि भेदात्रिविध इति । "
अर्थ :
सद्धमण्डनम् ।
रूपान्तर प्राप्तिका नाम परिणाम है कहा है कि न तो सर्वथा अपने रूपमें स्थित रहना और न सर्वथा नाश हो जाना, किन्तु अपनेसे भिन्न किसी दूसरे रूपमें आ जाना परिणाम है। जीवका दूसरे रूपमें आना जीव परिणाम है वह गति आदिके भेइसे दस प्रकारका है । गति रूप जो जीवका परिणाम है वह गति परिणाम है इसी तरह सभी परिणामोंमें समझना चाहिये । गति नामक कर्मके उदयसे नरक आदि व्यवहारका कारण जो जीवका परिणाम होता है वह गति परिणाम है। यह परिणाम जब तक भवका क्षय नहीं होता तब तक बना रहता है। यह नरक आदिके भेदसे चार प्रकारका होता है । गति परिणाम होने के बाद इन्द्रिय परिणाम होता है इस लिये मूल पाठ में गति परिणामको कहकर पश्चात् इन्द्रिय परिणाम कहा है। श्रोत्र आदि के भेदसे इन्द्रिय परिणाम पांच प्रकार
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