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आश्रवाधिकारः।
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भाव इन्द्रिय स्वरूप आश्रव भी जीव है। इस प्रकार आश्रव अजीव और जीव दोनों ही प्रकारका है।
(बोल १ समाप्त) (प्रेरक)
ठाणाङ्गकी उक्त टीकामें आश्रवका भेद बतलाते हुए पचीस क्रियाओंको आश्रव का भेद बतलाया है वे क्रियाएं कौनसी हैं और वे मजीवकी क्रिया क्यों मानी जाती हैं ? (प्ररूपक)
ठाणाङ्ग सुत्रके दूसरे ठाणेमें क्रियाके दो भेद बतलाते हुए कहा है कि क्रिया द्विविध होती है एक जीवकी क्रिया और दूसरी अजीवकी क्रिया । वह पाठ यह है
"दो किरिआओ पन्नत्ताओ तंजहा-जीव किरियाचेव अजीव किरियाचेव"
(ठाणाङ्ग ठाणा २) . "तत्र जीवस्य क्रिया व्यापारो जीव क्रिया, तथा अजीवस्य पुद्गल समुदायस्य यत्कर्मरूपतया परिणमनं सा अजीव क्रियेति” ।
अर्थ:....... क्रिया दो प्रकारकी है । जीवकी और अजीवकी, जीषके व्यापारको जीव क्रिया कहते हैं और पुद्गल समूहके कर्म रूपसे परिणाम होनेको अजीव क्रिया कहते हैं।
अजीव क्रिया दो तरहकी होती है एक ऐ-पथिकी और दूसरी सांपरायिकी, ऐउपथिकी का कोई अवान्तर भेद नहीं होता परन्तु साम्परायिकी क्रियाके चौवीस भेद होते हैं। चौबीस प्रकार की साम्परायिकी क्रिया और एक ऐापथिकी ये २५ क्रियाए अजीवकी कही गई हैं । ठाणाङ्ग ठाणा ५ में क्रियाका भेद बतलानेके लिये यह पाठ आया है :
__"पंच किरियाओ पन्नत्ताओ तंजहा-कायिया, अहिकरणिया, पाओसिया, परितावणिया, पाणातिवायकिरिया। पंच किरिआमओ पन्नत्ताओ तंजहा-आरंभिया, परिग्गहिआ, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाण किरियो, मिच्छादसणवत्तिया, पंचकिरिआओ पन्नत्ताओ तंजहा-दिटिया, पुटिया, पाडोचिया, सामन्तोवणिया, साहत्थिया।
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