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सद्धममण्डनम् ।
वाक्यके श्रवण करनेसे ही जीवको पुण्य कामना होना यहां कहा है । वह पुण्य कामना यदि वुरी है तब तो तथा रूपके श्रमण माहनसे सुवाक्य सुनना भी बुरा ही कहना होगा क्योंकि उसीके सुननेसे जीवको पुण्य कामनाका होना इस पाठ में कहा है। यदि तथा रूपके श्रमण माहनसे आर्य धर्म सम्बन्धी सुवाक्य सुनना बुरा नहीं है तब उस वाक्य सुनने से उत्पन्न होने वाली पुण्य भावना या पुण्य कामना भी बुरी नहीं हो सकती है। तथा पुण्य शब्दका अर्थ करते हुए टीकाकार लिखते हैं
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"धर्मः श्रुत चारित्र लक्षणः पुण्यं तत्फलभूतं शुभ कर्म "
अर्थात् श्रुत और चारित्रको धर्म कहते हैं और उस श्रुत चारित्र रूप धर्मका जो कर्म शुभ रूप फल है वह पुण्य कहलाता है । उस पुण्यको जो बुग बतलाता है उसके हिसाब से तो श्रुत और चारित्र रूप धर्म भी बुग ही ठहरता है क्योंकि श्रुत और चारित्र लक्षण धर्मका ही फल यहां पुण्य कहा है । वह पुण्य यदि त्याज्य होगा तो फिर उसका कारण त चारित्र रूप तथा उसका भी कारण श्रमण माहनसे सुवाक्य सुनना त्याज्य ही ठहरेंगे | अतः इस पाठका नाम लेकर पुण्यको त्याज्य कायम करना मिथ्या है।
यदि कहो कि इस प में तो आर्य्य धर्म सम्बन्धी सुवाक्य सुननेसे स्वर्गकामना होना भी लिखी है वह स्वर्ग कामना जैसे अच्छी नहीं कही जा सकती उसी तरह पुण्य कामना भी अच्छी नहीं कही जा सकती है तो यह भी मिथ्या है क्योंकि जो स्वर्ग कामना मोक्ष की प्रतिबन्धिका नहीं है किन्तु उसमें सहायता पहुंचाने वाली है उसीका यहां कथन है । जो मोक्षको रोकती है उसका नहीं। पहले पहल इस पाठ में श्रमण माहन के सुवाक्य सुनने से जीवको वैराग्य उत्पन्न होना कहा है । तदनन्तर स्वर्ग कामना लिखी है । वह स्वर्ग कामना मोक्षको सहायता देने वाली ही यहां समझनी चाहिये उसमें विघ्न डालने वाली नहीं क्योंकि जिसको संसारसे वैराग्य हो जाता है वह जीव मोक्ष प्राप्तिके वाधक वस्तुको अभिलाषा नहीं करता किन्तु उसके अनुकूल वस्तुकी ही इच्छा करता है । इसलिये इस पाठमें जो स्वर्ग कामना कही है वह भी मोक्षके अनुकूल होनेसे अच्छी ही है बुरी नहीं है | अतः उसका दृष्टान्त देकर पुण्य कामनाको बुरी बतलाना मिथ्या है। वास्तव में तथा रूपके श्रमण माहनसे आर्य धर्म सम्बन्धी सुवाक्य सुननेसे जो वैराग्य उत्पन्न होकर जीवके हृदय में धर्म कामना पुण्य कामना स्वर्ग कामना और मोक्ष कामना होती हैं वे सभी अच्छी हैं। इनमें एक भी बुरी नहीं है ।
यहां टीकाकारने लिखा है कि श्रमण और माहन इन दोनों शब्दोंके बाद जो मूल पाठ वा शब्द दिया है वह विकल्पका वोधक नहीं है किन्तु श्रमणसे सुवाक्य सुना जाय अथवा माइनसे सुवाक्य सुना जाय दोनोंसे एक समान ही स्वर्ग प्राप्ति होती
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