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वनयाधिकारः।
पूर्वोक्त मुनियोंको वन्दन नमस्कार करे तो उसे वे सावद्य नहीं जानते उसी तरह सामायकमें बैठा हुआ श्रावक श्रेष्ठ होनेके कारण दूसरे श्रावकको वन्दन नमस्कार नहीं करता परन्तु उसके वन्दन नमस्कारको सावध नहीं जानता। अन्यथा बड़ा साधु छोटे साधुको मौर जिनकल्पी, स्थविर कल्पी को एवं पुरुष साधु स्त्री साध्वीको वन्दन नमस्कार नहीं करते इसलिए छोटे साधु तथा स्थविर कल्पी साधु और स्त्री साध्वीके वन्दन नमस्कार को भी सावथ मानना पड़ेगा। ___यदि छोटे साधुको और स्थविर कल्पी साधुको तथा स्त्री साध्वीको क्रमशः बड़े साधु तथा जिनकल्पी साधु और पुरुष साधुसे वन्दन नमस्कार नहीं किये जाने पर भी उनका वन्दन नमस्कार सावय नहीं है तो उसी तरह सामायक और पोषामें बैठे हुए श्रावकसे श्रावकको बन्दन नमस्कार नहीं किये जाने पर भी श्रावक का वन्दन नमस्कार सावद्य नहीं है। अतः श्रावकके वंदन नमस्कारको सावय बतलाना एकांत मिथ्या समझना चाहिये।
(बोल ३ समाप्त)
(प्रेरक)
सम्बड सन्यासीके शिष्योंने संथाराग्रहण करते समय अम्बडजीको वन्दन नमस्कार किया था। उस वन्दन नमकस्कारको सावध सिद्ध करते हुए भ्रमविध्वंसनकार लिखते हैं कि
"अथ इहां चेला कयो नमस्कास्थावो म्हारा धर्माचार्य धर्मोपदेशकने इहां अम्वड परिव्राजकने नमस्कार थावो एहवू कयो । अम्वड श्रमणोपासकने नमस्कार थावो इम न कयो । ए श्रमणोपासक पद छांडि परिव्राजक पद ग्रहण करी नमस्कार कीधो ते मांटे परिव्राजकना धर्मनी आचार्य अने परिव्राजकना धर्मनो उपदेशक हैं। तिणने आगे पिण वन्दना नमस्कार करता हुन्ता । पछे जिण धर्म तिणकने पाम्या । पिण आगलो गुरुपणो मिट्यो नहीं । ते मांटे सन्यासी धर्मरो उपदेशक कयो छै ।"
इत्यादि लिख कर आगे लिखते हैं कि__ आचाऱ्यांना ३६ गुण कह्या छै अने अम्बड में तो ते गुग पावे नहीं आचाय्य पद तो पांचपदा मांहि छै । भने अम्वड तो पांचपदा माहीं नहीं छै । (भ्र० पृ० २७७)
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
सम्वडजीके शिष्योंने संथारा ग्रहण करते समय अरिहंत सिद्ध, और महावीर स्वामी के नमस्कारके साथ ही अम्बहजीको भी नमस्कार किया था उन्होंने अरिहंत,
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