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सद्धर्ममण्डनम् ।
दिक्कुमारियों ने तीर्थकर और उनकी माता का गुण ग्राम किया था वह पाठ
यह है
" जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयर माया य तेणेव उवागच्छंति २ त्ता भगवं तित्थवरं तित्थयर मायरंच तिक्खुत्तो आयाहिणं पया'हिणं करेंतित्ता पत्तेयं करयल परिग्गहियं सिरलावन्तं मत्थए अंजलि क एवं वासो मोत्थुते रयण कुच्छि धारिके जगप्पईव दीविए सव्व जग मंगलस्स चक्खुणो अमुत्तस्स सव्वजगजीव वच्छलस्स हियकारग मग्गदेसिय पागिद्धि विभु भुस्स जिष्णस्स णाणिस्स नायगस्स बुहस्स वोहगस्स सच्च लोग नाहस्स निम्ममस्त पवरकुलसमु भवस्स जाईए खत्तियस्स जंसि लोगुत्तमस्स जणणी घण्णासि तं पुष्णासि कयत्थासि अम्हेणं देवापिए अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठदिसा कुमारी महत्तरिआओ भगवओ तित्थयरस्स जम्मण महिमं करिस्सामो तण्णं तुन्भेहिं न भोइव्वं "
( श्री जम्बूद्वीप पन्नन्ति )
अर्थ :
दिक्क मारियो ने भगवान् तीर्थकर और उनकी माताके पास आकर तीन बार परिक्रमा दे कर शिरपर अंजलि बांध कर कहा कि - हे रलकुक्षिधारिये ? तुम्हारे लिये मेरा नमस्कार है। हे देवि ! संसार की सम्पूर्ण वस्तुओं को दोपकी तरह प्रकाशित करने वाले तीर्थकर देवको तुम उस्पन्न करनेवाली हो जो जगत्के सम्पूर्ण पदार्थों का यथार्थ स्वरूप दिखलाने वाले नेत्रके समान हैं जिनकी वाणी सब प्राणियोंका उपकार करने वाली सम्यग्ज्ञान, दर्शन, और चारित्र का उपदेश देने वाली, सव व्यापक तथा सबके हृदयमें प्रवेश करनेवाली है। जो तीर्थ कर देव राग द्वेपको जीतनेवाले उत्कृष्ट ज्ञानके स्वामी नायक और बुद्ध यानी सब पदार्थो के यथार्थ स्वरूप को जानने वाले हैं जो सब प्राणियों के हृदय में वोधि वोज के स्थापक और सबकी • रक्षा करने वाले और सबके वोधक हैं जो ममतारहित उत्तमकुलमें जन्मे हुए क्षत्रिय वंशधर हैं। ऐसे तीर्थंकर देवकी तू जननी है इसलिये हे देवि ! तू धन्य है पुण्यवती है और कृतार्थ है । हे देवि ! हम लोग अधोलोकमें निवास करनेवाली दिक्क मारिका हैं हम तीर्थकर देव जन्मकी महिमा करेंगी अतः आप किसी प्रकारका भय न करें ।
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यहां दिक् मारियों द्वारा तीर्थङ्कर और उनकी माताको वन्दना नमस्कार किया जाना तथा उनका गुणग्राम किया जाना कहा है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि अपने
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