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विनयाधिकारः।
(प्ररूपक)
भगवती सूत्र शतक २ उद्देशा ५ में श्रावककी सेवा भक्ति करनेका शास श्रवणसे लेकर मोक्ष पर्यन्त फल बतलाया है। वह पाठ यह है
"तहा रूवेणं भन्ते ! समणंवा माहनंवा पज्जुवासमाणस्स कि फला पज्जुपासणा ? गोयमा ! सवणफला सेणं भन्ते ! सवणे किं फले । णोणफले, सेणं भन्ते । णाणे किंफले विण्णाणफले । सेणं भन्ते विण्णाणे कि फले पञ्चक्खाण फले। सेणं भन्ते ! पञ्चक्खाणे किं फले, संजम फले । सेणं भन्ते ! संजमे किं फले, अणहणय फले। एवं अणण्हए तव फले तवे वोदारण फले वोदारणे अकिरियाफले। सेणं भन्ते! अकिरिया किं फला सिद्धिपनवसाणफला पण्णेत्ता गोयमा"
(भ० श० २ उ०५) अर्थ :
हे भगवन् तथा रूपके श्रमण और माहनकी सेवा करनेसे क्या फल होता है ? (उत्तर। हे गोतम ! शास्त्रका (धर्मका ) श्रवण फल होता है। (प्रश्न ) हे भगवन् ! शास्त्रके श्रवणसे क्या फल होता है । (उत्तर) हे गोतम ! शास्त्रीय सिद्धान्तका ज्ञान प्राप्त होता है। (प्रश्न) , ज्ञानसे क्या फल मिलता है ? (उत्तर) ज्ञानसे त्यागने योग्य और स्वीकार करने योग्य वस्तुका विवेक (विज्ञान) फल प्राप्त होता है। ( प्रश्न ) विज्ञानका क्या फल होता है ? (उत्तर) विज्ञामसे पापोंका प्रत्याख्यान होता है । ( प्रश्न ) पापोंके प्रत्याख्यानसे क्या फल होता है? (उत्तर) पापोंके प्रत्याख्यान करनेसे संयमकी प्राप्ति होती है । ( प्रश्न ) संयमका क्या फल होता है ? (उत्तर) संघमसे आश्रवका निरोध होता है। (प्रश्न) आश्रय निरोधसे क्या फल होता है। (उत्तर) आश्रवके निरोधसे तप रूप फल होता है। (प्रश्व) तपसे क्या फल मिलता है? (उत्तर) तपसे कर्मों की निर्जरा होती है। (प्रश्न ) निर्जराका क्या फल है ? ( उत्तर) मिर्जश से योगोंका निरोध होता है। ( प्रश्न ) योग निरोधका क्या फल है ? (उत्तर) योग निरोधसे सब फलोंका अन्त स्वरूप मोक्ष प्राप्त होता है।
इस पाठमें तथा रूपके श्रमण और माहनकी सेवा भक्ति करनेसे धर्म श्रवणसे लेकर मोक्ष पर्यन्त फल मिलना कहा है और इस पाठकी टीकामें स्पष्ट लिखा है कि श्रमण नाम साधुका और माहन नाम श्रावकका है । वह टीका यह है "श्रमणः साधुर्माहनः पावकः" । अतः इस पाठसे श्रावककी सेवा भक्ति करमा धर्म सिद्ध होता है। अतः
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