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वैयावृत्याधिकारः।
के लिये गृहस्स्थकी साता पूछना और उसका व्यावच करना अनाचार है पर श्रावकके 'लिये नहीं। यदि कोई उक्त कार्यको गृहस्थके लिये भी अनाचार कहे तो फिर उसके हिसाबसे अपने आश्रित प्राणीको भात पानी देना भी गृहस्थके लिये प्रायश्चित्तका कारण कहना चाहिये। क्योंकि साधु अपने सांभोगिक साधुसे इतरको आहार पानी देनेसे प्रायश्चित्ती हो जाता है तो फिर गृहस्थ अपने आश्रित पशु आदिको आहार पानी देनेसे प्रायश्चित्ती क्यों नहीं होगा ? पर बात ऐसी नहीं है। गृहस्थ यदि अपने
आश्रित पशु आदिको भात पानी न दे तो प्रायश्चित्ती होता है और साधु यदि सांभोगिक साधुसे भिन्नको उत्सर्ग मार्गमें आहार पानी देवे तो प्रायश्चित्ती होता है। अतः साधुके लिये गृहस्थकी साता पूछना और उसका व्यावच करना मनाचार है श्रावकके लिये नहीं है।
दशवकालिक सूत्रमें उद्दिष्ट भक्त लेना साधुके लिये पहला अनाचार कहा है इस लिये जो साधु उद्दिष्ट भक्त लेता है वह प्रायश्चित्ती होता है परन्तु आदिम और अन्तिम तीर्थकरके साधुओंको छोड़ कर दूसरे साधु यदि उद्दिष्ट भक्त लेवें तो वे पापके भागी नहीं होते क्योंकि उद्दिष्ट भक्त लेना उनके कल्पसे विरुद्ध नहीं है। अतः जैसे उद्दिष्ट भक्त लेना आदिम और अन्तिम तीर्थ करके साधुओंके लिये अनाचार है दूसरे तीर्थकरोंके साधुओंके लिये अनाचार नहीं है उसी तरह गृहस्थकी साता पूछना और उसका व्यावच करना साधुके लिये अनाचार है श्रावकके लिये अनाचार नहीं है। अतः गृहस्थकी साता पूछने और उसका व्यावच करनेसे गृहस्थको भी अनाचार बतलाना शास्त्र विरुद्ध समझना चाहिये।
२४ वें तीर्थकरके साधु तेइसवें तीर्थ करके साधुको आहार पानी नहीं देते । क्योंकि उनका यह कल्प नहीं है। यदि देवें तो उनको प्रायश्चित्त आता है। परन्तु गृहस्थ यदि तेईसवें तीर्थ करके साधुओंको आहार पानी देवे तो उसको पाप नहीं होता किन्तु धर्म होता है। इस लिये जो कार्य साधुके लिये अनाचार है वह गृहस्थके लिये भी अनाचार हो यह कल्पना मिथ्या समझनी चाहिये ।
इसी तरह निशीथ सूत्र उद्देशा १३ का दाखला देकर जीवरक्षा करनेमें पाप कहना भी मिथ्या है निशोथ सूत्र उद्देशा १३ के अन्दर किसी प्राणीकी रक्षा करना वर्जित नहीं की है किन्तु भूति कर्म करनेका निषेध किया है। इस लिये साधु भूति कर्म नहीं करते । यदि भूति कर्म करें तो उनको अवश्य प्रायश्चित्त आता है परन्तु अपनी कल्प मर्यादाके अनुसार जीवरक्षा करनेसे पाप नहीं होता। क्योंकि जीवरक्षा करनेका कहीं भी शास्त्रमें निषेध नहीं है । प्रत्युत प्रश्नव्याकरणादि सूत्रोंमें जगह जगह
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