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( अथ वैयावृत्याधिकारः)
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सावद्य छ।
(प्रेरक)
भ्रम विध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ २५१ के ऊपर उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन १२ की ३२ वी गाथा लिखकर उसकी सहायतासे मुनिके व्यावचको सावध सिद्ध करने की चेष्टा करते हुए लिखते हैं
"अथ इहां हरिकेशी भुनि कहो-पूर्वे हिवाडा अने आगामिये काले म्हागे तो किञ्चिद्वेष नहीं । अने जे यशे व्यावचकोधी ते मांटे ए बिप्र वालकांने इण्या छै। एपोतानी आशंका मेटवा अथें कह्यो । जे छात्राने हण्याते यक्ष व्यावचकरी पिण म्हारो द्वेष न थी । ए छात्राने हण्या ते पक्षपात रूप व्यावच कही छै। आज्ञा वाहिरे छै ते मांटे
(भ्र० पृ० २५१) इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
यक्षने मुनिका उपद्रव मिटानेके लिये जो ब्राह्मण कुमारोंका ताडन किया था उस ताडनको मुनिका व्यावच बतलाकर मुनिके व्यावचको सावद्य बतलाना मिथ्या है। क्योंकि मुनिका व्यावच करना न्यारा है और ब्राह्मण कुमारोंको ताडन करना न्यारा है मारना और व्यावच करना दोनों एक नहीं हैं। अतएव इसी उत्तराध्ययन सत्रमें जहां यक्षोंने ब्राह्मग कुमारोंका निवारण करना आरंभ किया है वहां यह गाथा कही है कि "इसिस्सवेयावडियट्ठयाए जक्खा कुमारे विणिवारयन्ति" अर्थत् यक्ष ऋषिका व्यावच करनेके लिये ब्राह्मण कुमारोंका निवारण करने लगे।
___ यहां ऋषिका व्यावचके निमित्त ब्राह्मण कुमारोंका ताडन किया जाना कहा है, ताडनको ही मुनिका व्यावच नहीं कहा । इस लिये व्यावच और ताडनका भिन्न भिन्न होना स्पष्ट सिद्ध होता है । जैसे देवताओंने भगवान महावीर स्वामीका वन्दनके निमित्त जहां वैक्रिय समुद्घात किया है वहां “वन्दन वत्तियाए" यह पाठ आया है। उसी तरह यहां भी यक्ष लोग जब ब्राह्मण कुमारोंको वारण करने लगे हैं वहां 'वेयावडियठ्याए' यह पाठ आया है। जैसे वंदनार्थ किया जाने वाला वैक्रिय समुद्घात वन्दन स्वरूप नहीं है किन्तु वन्दनसे भिन्न है । उसी तरह व्यावचार्थ किया जानेवाला ब्राह्मण कुमारोंका ताडन
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