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सद्धर्ममण्डनम् ।
शासन प्रतिपादितो मोक्षमार्गस्तं ये परिहरन्ति तथाच परमं समाधि ज्ञान दर्शन चारित्रात्मकं येत्यजन्ति तेऽज्ञाः संसारान्त वर्तिनः सदा भवंति । एन मार्य मार्ग जैनेन्द्र प्रवचनं सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र मोक्ष माग प्रतिपादकं "सुखं सुखेनैव विद्यते” इत्यादि मोहेन मोहिता अवमन्यमाना परिहरन्तः अल्पेन वैषयिकेण सुखेन मा वहु परमार्थ सुख मोक्ष सुख मोक्षा ख्यं लुम्पथ विध्वंसथ । तथाहि मनोज्ञाहारादिना कामोद्रे कः । तदुद्र काच्च चित्ता स्वास्थ्यं न पुनः समाधिरिति । अपिच एतस्यासत्यक्षाभ्युपगमस्यामोक्षेऽपरित्पागे सति “अयोहारिक जूरह" अत्मानं यूयं कदर्थ यथ केवलं यथासौ अयसो-लोहस्याहर्ता अपान्तराले रूप्यादि लाभे सत्यपि दूरमानीत मिति कृत्वा नोज्झितवान पश्चात स्वस्थानावाप्तामल्प लाभे सति जूस्तिवान पश्चात्तापं कृतवान् एवं भवन्तोऽपि जूरयिज्यन्तीति ।"
अर्थ :____ मतान्तरका खण्डन करनेके लिये छट्ठी गाथामें अन्य मतावलम्बियोंकी ओरसे पूर्व पक्ष किया गया है। वह इस प्रकार है-मोक्ष प्राप्तिके विषयमें शाक्य आदि, तथा केशोल्लुञ्चनसे पीड़ित कई एक अपने यूथ वाले, यह कहते हैं कि सुखकी प्राप्ति सुख हीसे होती है। जैसे कि उन लोगोंने अपने मतका पोषण करनेके लिये यह श्लोक बनाया है "सर्वाणि सत्वानि" इत्यादि । इसका अर्थ यह है कि सभी जीव सुखमें रत हैं और सभी लोग दुःखसे उद्विग्न होते हैं। इस लिये सुखकी इच्छा करने वाले पुरुषको सुख ही देना चाहिये क्योंकि सुख देनेवाला ही सुख पाता है । इस विषयमें ये लोग यह युक्ति देते हैं कि सभी कार्य अपने कारणके अनुरूप हो उत्पन्न होते हैं शालिके वीजसे शालिका ही अकुर उत्पन्न होता है यवका अंकुर उत्पन्न नहीं होता इसी तरह इस लोकमें सुख भोगनेसे ही पर लोकमें सुख मिलता है परन्तु केशोलुञ्चनादि रूप दुःख भोगनेसे नहीं मिलता । इनके आगममें भी यही कहा है कि साधुको मनोज्ञ आहार खाकर मनोज्ञ शय्याके ऊपर मनोज्ञ गृहमें मनोज्ञ वस्तुका ध्यान करना चाहिये। कोमल शय्यापर शयन करना, प्रभात कालमें दुग्ध आदि पौष्टिक पदार्थ पीना, तथा दिनके मध्य भागमें स्वादिष्ट भात आदि खाना,
और दोपहरके बाद शर्वत आदि पीना, तथा आधी रातमें दाख शक्कर आदि मधुर पदार्थ खाना, इन कार्यों से अन्तमें मोक्ष मिलता है यह शाक्य पुत्रका विश्वास है। संक्षेपसे इनका सिद्धान्त यह है कि मनोज्ञ आहार विहारसे चित्तमें समाधि उत्पन्न होती है और चित्तमे समाधि उत्पन्न होनेसे मोक्ष सुख मिलता है । अतः सिद्ध हुआ कि सुखसे ही सुख मिलता है पर केशोलुञ्चनादि रूप दुःख भोगनेसे नहीं। ___इस प्रकारका सिद्धान्त रखनेवाले मूढ़मति शाक्य आदि, सभी हेय धर्मो से पृथक् रहने वाले जिन प्रतिपादित आर्य्य धर्मका त्याग करते हैं और ज्ञान दर्शन तथा चारित्र रूप मोक्ष मार्ग को छोड़ देते हैं ! वे ज्ञान रहित हैं और चिरकाल तक इस संसार चक्रमे घूमते रहते हैं। उनपर
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