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सद्धर्ममण्डनम् ।
अर्थ :
(प्रश्न) हे भगवन् ! व्यवहार के प्रकारका होता है ? . (उत्तर) हे गोतम ! व्यवहार पांच प्रकारका होता है।
(१) आगम व्यवहार (२ श्रुत व्यवहार (३) आज्ञा व्यवहार (8) धारणा व्यवहार (१) जित व्यवहार । जहां केवल आदि छः आगमोंमेंसे कोई आगम विद्यमान हो वहां प्रायश्चितादि व्यवस्था आगमसे दी जाती है श्रुत आदिसे नहीं। जहां आगम न हो वहां श्रुत व्यवहारसे व्यवस्था देनी चाहिये आज्ञा आदिसे नहीं। जहां श्रुत न हो वहां आज्ञासे, जहां आज्ञा न हो वहां धारणासे, जो धारणा न हो वहां जितसे व्यवस्था देनी चाहिये परन्तु आज्ञाके होने पर धारणासे और धारणाके होने पर जितसे व्यवस्था नहीं देनी चाहिये । यह उक्त पाठका अर्थ है।
इस पाठमें व्यवहारके आगम आदि छः भेद बतला कर पूर्व पूर्वके सद्भावमें उत्तर उत्तरसे व्यवस्था देने का निषेध किया है इसी तरह आगमों में भी केवल ज्ञानके रहने पर शेष पांच आगमोंसे और मन पर्यावके रहते शेष चारसे एवं अवधिके रहने पर शेष तीन से, चौदह पर्वके रहते शेष दोसे और दश पूर्वके रहने पर शेष नव पूर्वसे और नव पूर्वके रहने पर श्रुत आदिसे व्यवस्था देनेका निषेध किया है अतः छद्मस्थतीर्थकरमें आगम व्यवहारके होनेसे श्रुतादि व्यवहारानुसार उनमें दोषकी स्थापना नहीं की जा सकती। भगवान महावीर स्वामी दीक्षा लेनेके बाद ही मन: पर्याव ज्ञानके धनी हो गये थे इस लिये उनको श्रुतादि व्यवहारोंसे आचरण करनेकी कोई आवश्यकता न थी उनके सभी व्यवहार आगम व्यवहारके अनुकूल ही होते थे अतः उनके कार्याको श्रुतादि व्यवहारके अनुसार समालोचना करना अज्ञान का परिणाम समझना चाहिये।
भ्रम विध्वंसन कारने भी अपने प्रश्नोतर तत्वबोध नामक ग्रन्थमें आगम व्यवहारके रहने पर श्रुतादि व्यवहारोंसे कार्य न होनेका उल्लेख किया है। (प्रश्न) - दशवर्षा पछे भगवतो भगवी व्यवहार उहशा १० करो तो धनो नवमासे ११ अंग भण्यो किम् ? (उत्तर)
वीरनी आज्ञाई दोष नहीं ते ठामे आगम व्यवहार प्रवततो सूत्र व्यवहाररो काम नहीं । व्यवहार उद्देशे १० तथा ठागाङ्ग ठाणा ५ करो जिवारे आगम व्यवहार व्है तिवारे आगम व्यवहार थापवो अने आगम व्यवहार न व्है तिवारे सूत्र व्यवहार थापवो इम कयो"
(प्रश्नोत्तर तत्व बोध उत्तर नं० १२३)
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