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सद्धर्ममण्डनम् ।
भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशा ६ का मूल पाठ इसमें प्रमाण है। वह पाठ यह है:
"पुलाएणं भन्ते । किं सलेस्तो होज्जा अलेस्से होज्जा ? गोयमा ! सलेस्से होज्जा णो अलेस्से होज्जा । :जइ सस्से होज्जा रोणं भन्ते ! कतिमुलेस्सासु होज्जा ? गोयमा ! तीसु विसुद्ध लेस्सासु होज्जा तंजहा-तेउलेस्साए पम्हलेस्साए सुक्ललेस्साए, एवं वउसेवि एवं पणिसेवणा कुसोलेवि"
(भगवती श० २५ उ०६) मर्थ :(प्रश्न ) हे भगवन् ! पुलाक निग्रन्य, सलेशी होता है या अलेशी होता है ? (उत्तर) हे गोतम ! पुलाक निग्रन्थ सलेशी होता है अलेशी नहीं होता। (प्रश्न ) हे भगवन् ! यदि सलेशी होता है तो वह कितनी लेश्याओं में होता है ?
(उत्तर) हे गोतम ! तीन विशुद्ध लेश्याओं में होता है तेजो लेश्या में, पन लेश्या में, और शुक्ल लेश्या में । इसी तरह वकुश और प्रतिसेवनाकुशील तीन विशुद्ध लेश्याओं में ही होते हैं।
यहां पुलाक वकुश और प्रतिसेवना कुशीलमें तीन विशुद्ध भाव लेश्यायें कही गयी हैं कृष्णादि प्रशस्त भाव लेइया नहीं तथापि पुलाक निग्रन्थ लब्धिका प्रयोग क• रता है और वकुश तथा प्रतिसेवना कुशील मूल गुण और उत्तर गुण में दोष लगाते हैं इसलिये कृष्ण लेश्या के विना लब्धिका प्रयोग नहीं होता यह कहना शास्त्र नहीं जानने का फल है। (प्रेरक)
पुलाक ऋश और प्रतिसेवनाकुशील दोषके प्रतिसेवी होते हैं इस में क्या प्रमाण है ?
पुलाक वकुश और प्रतिसेवना कुशील दोषके प्रतिसेवी होते हैं इस विषयमें भगवती शतक २५ उद्देशा ६ का मूलपाठ प्रमाण है वह पाठ यह है:
___ "पुलाएणं भन्ते ! किं पडिसेवएहोजा अपडिसेवएहोला ? पडिसेवए होड्डा नो अपडिसेवए होजा। जइपडिसेवए होजा कि मूल गुण पडिसेवए होजा उत्तर गुण पडिसेवए होज्जा ? गोयमा ! मूल गुण पडिसेवए होज्जा उत्तर गुण पडिसेवए होज्जा । मूल गुण
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