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लेश्याधिकारः।
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पडिसेवमाणे पञ्चण्हं अणासवाणं अण्णयरं पडिसेवएज्जा उत्तर गुण पडिसेवमाणे दसविहस्स पश्चक्खाणस्स अण्णयरं पडिसेवेज्जा । वउसेणं पुच्छा ? पडिसेवए होज्जाणो अपडिसेवए होज्जा। जइ पडिसेवए होज्जा कि मूल गुण पडिसेवए होज्जा उत्तर गुण पडिसेवए होज्जा। गोयमा ! नो मूलगुण पडिसेवए होज्जा उत्तरगुण पडिसेवए होज्जा उत्तरगुण पडिसेवमाणे दसविहस्स पञ्चक्खाणस्स अण्णयरं पडिसेवेज्जा । पडिसेवणा कुशील जहा पुलाए"
(भग० श० २५ उ०६) अर्थ
हे भगवन् ! पुलाक निनथ प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेषी होता है। . (उत्तर) हे गोतम ! प्रतिसेवो होता है अप्रतिसेवी नहीं होता।
(प्रश्न ) यदि प्रतिसेवो होता है तो क्या वह मूल गुणका प्रतिसेवो होता है या उत्तर गुणका प्रतिसेवी होता है?
( उत्तर ) हे गोतम ! मूल गुण और उत्तर गुण दोनोंका ही प्रतिसेवो होता है जब वह मूल गुणका प्रतिसेवी होता है तब पञ्च महाव्रतोंमेंसे किसी एककी विराधना करता है और जब उत्तर गुणका प्रतिसेवी होता है तब दश विध प्रत्याख्यानों से किसी एककी विराधना करता है।
(पूश्न ) हे भगवन् ! वकुश निनथ प्रतिसेवी होता है या अपूतिसेधी होता है ? (उत्तर हे गोतम ! पूतिसेवो होता है अपूतिसेवी नहीं होता ?
(पूरन ) हे भगवन् ! वह मूल गुगका प्रतिसेवी होता है या उत्तर गुणका प्रतिसेवी होता है ?
(उत्तर) हे गोतम ! वकुश निग्र'थ मूल गुण का नहीं उत्तर गुण का प्रतिसेधी होता है। जब यह उत्तर गुणका पूतिसेवी होता है तब दशविध प्रत्याख्यानोंमेंसे किसी एककी विराधना करता है। पूतिसेवना कुशील, पुलाककी तरह मूल गुण और उत्तर गुण दोनोंका पूतिसेवी होता है।
यहां पुलाक और प्रतिसेवना कुशीलको मूलगुण और उत्तर गुण दोनोंका प्रतिसेवी कहा है तथा वकुशको उत्तर गुणका प्रतिसेवी कहा है तथापि इनमें तीन विशुद्ध भाव लेश्या ही पाई जाती हैं इस लिये कृष्णादि तीन अप्रशस्त भाव लेश्याके बिना दोष का सेवन नहीं होता यह कहना अज्ञानका परिणाम है।
(बोल ९ वां समाप्त)
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