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सद्धर्ममण्डनम् । बताने, दीक्षा देने आदि कार्यों को भगवान्के चूकनेमें प्रमाण देना अविवेकका परिणाम जानना चाहिये।
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[बोल १३ वां ]
(प्रेरक)
छमस्थ तीर्थकर आगम व्यवहारी और कल्पातीत होते हैं इस में क्या प्रमाण है ?
(प्ररूपक) .. छद्मस्थ तीर्थङ्कर आगम व्यवहारो और कल्पातीत होते हैं इस विषयमें भगवती शतक २५ उद्देशा ६ का मूलपाठ प्रमाण है। वह पाठ यह है
"कषाय कुशीले पुच्छा गोयमा ! जिण कप्पे वा होजा, शेर कप्पे वा होज्जा कप्पातीते वा होजा" .
(भग० श० २५ उ०६) अर्थ:.... (प्रश्न ) हे भगवन् ! कषाय कुशील निग्रन्थमें कितने कल्प होते हैं ?
(उत्तर) हे गोतम ! कषाय कुशील निग्रन्थ जिन कल्पी भी होते हैं स्थविर कल्पी भी होते हैं और कल्पातीत भी होते हैं। ___ यह उक्त गाथाका अर्थ है।
इस पाठमें कषाय कुशीलमें तीन कल्प कहे हैं-जिन कल्प, स्थविर कल्प और कल्पातीत । इनमें कल्पातीत कषाय कुशील नियण्ठा, केवल छद्मस्थ तीर्थंकरमें ही होता है दूसरेमें नहीं यह टीकाकारने लिखा है वह टीका यह है:
___"कल्पातीतेवा कषाय कुशीलो भवेत् । कल्पातीतस्य छद्मस्थ तीर्थंकरस्य सकपायत्वात् । । अर्थात् कषाय कुशील निग्रन्थ, कल्पातीत भी होता है क्योंकि छद्मस्थ तीर्थकर कषाय कुशील होते हैं और वह कल्पातीत हैं।।
उक्त पाठ और उसकी उक्त टीकामें छघस्थ तीर्थकरको कल्पातीत कहा है । कञ्पासीत वह है जो जिन कल्प और स्थविर कल्पका उल्लंघन किया हुआ है। भगवतीकी टीकामें लिखा हुआ है कि "कप्पा तीतेति जिन 'कल्प स्थविरकल्पाभ्यामन्यत्र” अर्थात् जिन कल्प और स्थविर कल्पसे भिन्नको कल्पातीत कहते हैं। कल्पम् अतीता: कल्पा सौताः" इस व्युत्पत्तिसे, जो कल्पका उल्लंघन किया हुआ है यानी जिस पर शास्त्रीय मर्यादाका कोई अधिकार नहीं है वह कल्पातीत है । शास्त्रमें प्रधान रूपसे दो ही कल्प
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