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प्रायश्चित्तायधिकारः।
निमेल परिणामका धनी दोषका प्रतिसेवी नहीं होता। भगवान महावीर स्वामी षष्ट गुण स्थानमें अति विशिष्ट निर्मल परिणामके धनी थे इसलिये वह दोषका प्रतिसेवो नहीं थे मतः गोशालककी रक्षा करनेके कारण भगवान को चूका हुआ बतलाने वाले अज्ञानी और अनुकम्पाके द्रोही हैं। (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्र० पृ० ३२२ पर लिखते हैं:
"गोशालाने तिल बताई, लेश्या सिखाई, दीक्षा दीधी ए सर्व उपयोग चूकने कार्य कीधा । जो उपयोग देवे अने जाने ए तिल उखेड़नाखसी तो तिलवतावताइज क्याने पिण उपयोग दिया विना एकार्य किया छै" (भ्र० पृ० २२२)
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
भगवान महावीर स्वामीने छद्मस्थपनेमें गोशालकको तिल बताया, दीक्षा दी और लेख्या सिखाई यह सब कार्य यदि भगवान का चूकना है तो केवल झान होने पर भगवान महावीर स्वामीने गोशालकको मृत्यु बताई, जामालीको दीक्षा दी और काली आदि दश रानियोंको उनके पुत्रोंका मरण बताया था यह सब कार्य्य उनका चकना क्यों नहीं मान लेते ? क्योंकि इन कार्यो का परिणाम भी बहुत बुरा हुआ था। गोशालक अपने मरणका समय आया जान कर बहुत भयभीत हुआ था। जामाली कुशिष्य हुआ और काली आदि दश रानियां पुत्र मरण सुन कर भगवान के समवसरणमें ही मूच्छित होकर गिर गयीं थी। इसी तरह भगवान नेमिनाथजीने केवल ज्ञान होने पर संकेतसे सोमिल ब्राह्मगका मरण बतलाया था जिसका फल यह हुआ कि सोमिल को श्रीकृष्णने सारे शहरमें घसीट वाया और घसीटनेकी लकीर जो पृथ्वी पर पड़ी थी उस पर पानी छिटक वाया फिर इस कार्यको भगवान नेमिनाथजी के चूकने में क्यों नहीं मान लेते ?
यदि कहो कि केवल ज्ञानी पुरुष, अतीन्द्रियार्थ दी अपरिमित झानी कल्पातीत और गम व्यवहारी होते हैं वह जो करते हैं उसका रहस्य वही जानते हैं इसलिये सूत्र व्यवहारीके कल्पानुसार उनके कार्याको बुरा नहीं कहा जा सकता तो उसी तरह छद मस्थ तीर्थकर भी आगम व्यवहारी और कल्पातीत होते हैं इसलिये सुत्र व्यवहारीके कल्पका नाम लेकर उनके कार्यको भी बुरा नहीं कह सकते अतः गोशालकको तिक
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