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सद्धर्ममण्डनम् ।
करता ? | तो इसका उत्तर यही है कि साधु शास्त्रीय विगनानुसार ही अपनी और दूसरे की रक्षा करता है विधानका उल्लंघन करके नहीं करता। नावमें आता हुआ पानी बतलाना साधुका कल्प नहीं है इसलिए वह नावमें आता हुआ पानी नहीं बतलाता। जैसे कि गृहस्थके हाथकी रेखा भी यदि को पानीसे भींगो हुई हो तो साधु उसके हाथसे आहार नहीं लेता क्योंकि उसका यह कल्प नहीं है और वही साधु अपवाद मार्गमें नदी भी पार करता है । नदी पार करना उसके कल्पके विरुद्ध नहीं है क्योंकि इसके लिये तीर्थकरकी आज्ञा है परन्तु नावमें आता हुआ पानी बतलाना आज्ञामें नहीं है इसलिए साधु नावमें आता हुआ पानी नहीं बतलाता परन्तु अपनी और दूसरेकी कल्पानुसार रक्षा करने में साधु पाप नहीं समझता मतः आचारांग सूत्रका नाम लेकर जीव रक्षा करनेमें पाप बताना अज्ञानका परिणाम समझना चाहिए।
(बोल २७) (प्रेरक) ___ भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १६१ पर निशीथ सूत्र उद्देशा १२ बोल १-२ का मूल पाठ लिखकर उनकी समालोचना करते हुए लिखते हैं :
“अथ इहा "कोलुण पडियाए" कहितां अनुकम्पा निमित्त स जीवने बांध बांधताने अनुमोदे भलो जाणे तो चौमासी दण्ड कयो अने बांध्या जीवने छोड़े छोड़ताने अनुमोदे भलो जाणे तो पिण चौमासी प्रायश्चित्त कयो बांधे छोड़े तिणने सरीखो प्रायश्चित्त कह्यो छे । (भ्र. पृ० १६१ इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
निशीथ सुत्रका वह पाठ लिखकर इसका समाधान किया जाता है ।
"जे भिक्ख कोलुण पडिआए अण्णरियं तसपाणिजायं तण पासएणवा मुञ्जपासएणवा कठ्ठपासएणवा चम्म पासएणका वंघइ वंधतंबा साइज्जइ । जेभिक्खू वंधोल्लय मुयइ मुर्यातवा साइज्जा ।'
जो साधु अनुकम्पाके निमित्त किसी त्रस प्राणीको तृण पाससे, मुञ्जके पाससे, काष्ठपाससे या चर्म पाससे बांधता है या बांधनेवालेको अच्छा जानता है तथा जो साधु बंधे हुए इस प्राणीको छोड़ता है या छोड़ते हुएको अच्छा जानता है उसे चौमासी प्रायश्चित्त आता है। यह इस पाठका अर्थ है।
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