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सद्धममण्डनम् ।
लिये भगवान महावीर स्वामीके इन शिष्योंमें पाप और प्रमादका होना सम्भव है, परंतु भगवान महावीर स्वामीमें नहीं क्योंकि भगवान महावीर स्वामीके विषयमें जो आचारांगकी गाथाएं लिखी गई हैं उनमें साफ साफ भगवान में पाप और प्रमाद का निषेध किया है। अत: उवाई सुत्रके इस पाठसे आचारांग सूत्रकी पूक्ति गाथाओंकी तुल्यता बता कर भगवान में बलात्कारसे पाप और प्रमादका स्थापन करना मिथ्या है।
- उवाई सुत्रमें यदि यह कहा होता कि "भगवान महावीर स्वामी के शिष्यों ने कभी भी पाप और प्रमाइका सेवन नहीं किया था" तो अवश्य यह बात मानी जाती कि भगवान के शिष्योंने कभी भी पाप और प्रमाद नहीं किया था परन्तु मूलपाठमें ऐसा नहीं कहा गया है इसलिये भगवान महावीर स्वामीके शिष्यों में पाप और प्रमाद होनेका खण्डन नहीं किया जा सकता लेकिन भगवान महावीर स्वामीके विषयमें तो आचारांगकी उक्त गाथाओंमे साफ साफ लिखा है कि "भगवान ने छद्मस्थावस्थामें स्वल्प भी पाप और एक वार भी प्रमादका सेवन नहीं किया था।" ऐसी दशामें जो भगवान महावीर स्वामीमें पाप और प्रमादका स्थापन करता है वह उत्सूत्रवादी मिथ्यादृष्टि है।
(बोल ५ वां समाप्त) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ २३३ पर उवाई सूत्रका मूलपाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं
“अथ अठे कौणिकने सर्व राजाना गुग सहित कह्यो, माता पितानो विनीत कयो अने निरावलियामें कह्यो, जे कोणक श्रेणिकने वेडिवन्धन देई पोते राज्य बैठो तो जे श्रेणिकने वेडी वन्धन बांध्यो ते विनीत पणो नहीं ते तो अविनीत पणोइज छै। पिण उवाईमें कौणिकना गुण वर्णव्या तिणमें जेतलो विनीतपणो तेहिज वर्णव्यो अविनीत पणो गुग नहीं तेभणी गुग कहिणेमें तेहनो कथन कियो नहीं तिमगणधरां भगवानागुण किया त्यां गुगामें जेतला गुण हुन्ता तेहिज गुग वखाण्या परं लब्धि फोडो ते गुग नहीं ते अवगुणरो कथन गुणामें किम करे" ( भ्र० पृ० २३३)
इसका क्या उत्तर ? (प्ररूपक)
__भ्रमविध्वंसन कारका यह कथन भी अज्ञानसे परिपूर्ण है। उवाई सत्रके मूलपाठमें कौणिक राजाके चम्पानगरीमें निवास काल का गुग वर्णन किया है। कौणिक राजा चम्पानगरीमें जब रहने लगा था तब वह माता पिताका विनीत हो गया था अतएव वह
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