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प्रायश्चित्तायधिकारः।
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(प्ररूपक)
कषाय कुशीलमें छः समुद्घात और पांच शरीर पाये जाते हैं तथापि भगवती शतक २५ उद्देशा ६ में उसे दोषका अप्रतिसेवी कहा है । वह पाठ यह है
"कसाय कुसोलेणे पुछा गोयमा ! नो पष्ठिसेवए होज्जा अपडिसेवए होजा"
(भगवती शतक २५ उ०६) अर्थ:
(प्रश्न ) हे भगवन् । कषाय कुशील दोष का प्रतिसेधी होता है या अप्रतिसेधी होता है ?
(उत्तर) हे गोतम ! कषाय कुशोल दोष का अप्रतिसेवी होता है प्रनिसेधी नहीं होता है।
इस पाठमें कषाय कुशीलको साफ साफ दोषका अप्रतिसेवी बतलाया है इसलिये छः समुद्घात और पांच शरीरके पाये जाने पर भी कषाय कुशील दोषका अप्रतिसेवी ही होता है प्रतिसेवी नहीं। यदि कोई पूछे कि “काय कुशीलमें जब कि छः समुद्घात और पांच शरीर पाये जाते हैं सब वह दोष का अप्रतिसेवी कैसे हो सकता है ?" तो उसे कहना चाहिये कि दोषका प्रतिसेवन परिणामके अधीन होता है कार्यके अधीन नहीं होता। जैसे कि वीतराग साधुके पैरके नीचे आकर यदि कोई जानवर मर जाय तो वीतरागको ऐउपथिकी (पुण्य वन्ध ) किया लगती है और सरागी साधुके पैरके नीचे आकर कोई जानवर मर जाय तो उसको साम्परायिकी क्रिया लगती है। यहां पैरके नीचे आकर जानवरके मरनेमें कोई भेद नहीं है परन्तु परिणाममें भेद होनेसे वीतरागको तो पुण्यवन्ध और सगगको सम्पगयिकी क्रिया होती है। वीतरागका परिणाम निर्मल है इसलिये उसके पैरके नीचे आकर जानवरके मरनेसे उसे पुण्यवण्वकी क्रिया होती है और सराग साधुका परिणाम वैसा निर्मल नहीं है इस लिये उसके पैरके नीचे जानवरके मरनेसे उसे साम्परायिकी क्रिया लगती है उसी तरह कषाय कुशीलका परिणाम निर्मल होता है इसलिये छः समुद्घात और पांच शरीरके पाए जानेपर भी वह दोषका अप्रतिसेवी ही होता है। वकुश और प्रतिसेवना कुशील, कषाय कुशीलकी तरह निर्मल परिणाम वाले नहीं होते इस लिये ये दोषके प्रति सेवी होते हैं । यदि छः समुद्घात और पांच शरीरके पाये जानेसे ही दोषका प्रति सेवी हो जाता तो फिर वकुश और प्रतिसेवना कुशीलकी तरह कषाय कुशील
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