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सधर्ममण्डनम् । अध्ययन कर रहे हैं, प्रकृति, प्रत्यय, लोप, आगम, वर्णविकार, काल और कारकको जानते हैं यह यदि बोलते समय लिङ्ग आदिसे अशुद्ध बोल देखें तो उन पर हास्य नहीं करना चाहिये । यह नहीं कहना चाहिये कि अहो ! आचारादि धर मुनिका इस प्रकार पाक्कौशल है ? इस गाथामें "दृष्टिवाद मधीयानं" इस शाक्यमें वर्तमान कालका प्रयोग करके यह बतलाया गया है कि जिस मुनिने दृष्टिवादका अध्ययन करना समाप्त नहीं किया है किन्तु दृष्टिवादका अध्ययन अभी कर रहा है उससे यदि वाक् स्खलन हो जाय तो हास्य नहीं करना चाहिये। जिसने दृष्टिवादको पढ़ कर समाप्त कर दिया है उससे वाक् स्खलन होना असम्भव है। दृष्टिवादको पढ़ कर जिसने समाप्त कर दिया है उसमें ज्ञान और अप्रमादका बहुत ज्यादा सद्भाव होता है अतः वह भूल नहीं कर सकता है। इस पाठमें यह उपदेश किया गया है कि दृष्टिवादका अध्ययन करने धाले मुनिसे यदि वाक् स्खलन हो जाय तो हास्य नहीं करना चाहिये। इससे यह भी सिद्ध होता है कि आचार प्रज्ञप्ति धर मुनिसे जब कि वाक् स्खलन होता है तब फिर दूसरेसे वाक्स्खलन होना तो एक साधारण बात है इसलिये यदि दूसरेसे भी वाक् स्खलन हो जाय तो उस पर हास्य नहीं करना चाहिये । यह उक्त गाथाका टीकानुसार अर्थ है।
यहां "दृष्टिवाद मधीयान" इस वाक्यमें वर्तमान कालका प्रयोग देकर दृष्टिवादको पढ़ते हुए मुनिका वाक् स्खलन होना बतलाया है, जिसने दृष्टिवादको पढ़ कर समाप्त कर दिया है उसका वाक् स्खलन होना नहीं कहा है अत: इस गाथाका नाम लेकर चौदह पूर्वधारीको चूक होनेकी सिद्धि करना मिथ्या है। चौदह पूर्वधारी दृष्टिवादको पढ़ा हुआ होता है अतः वह कदापि चूक नहीं सकता है। किन्तु जो अभी दृष्टिवादको पढ़ रहा है उसीका चूकना इस गाथामें कहा है।
(बोल ९ वां समाप्त) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकारका मत है कि कषाय कुशील निनथमें छ: समुदघात और पांच शरीर शास्त्रमें कहे हैं। और वैक्रियलब्धिका प्रयोग करनेवालेको विना आलोचना लिये मरने पर विराधक कहा है तथा वैक्रियलब्धि और आहारक लब्धिके प्रयोग करनेसे पांच क्रियाका लगना शास्त्रमें कहा है अतः कषाय कुशील निग्रन्थ भी वैक्रिय लब्धिका प्रयोग करता हुआ दोषका प्रतिसेवी होता है इसलिये सभी कषाय कुशीलोंको दोष अप्रतिसेवी बताना मिथ्या है।
इसका क्या समाधान ?
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