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सद्धर्ममण्डनम् ।
लगाते यह बात शास्त्र प्रसिद्ध है इसलिये भगवान महावीर स्वामीने जो शीतललेश्याका प्रयोग करके गोशालेकी प्राणरक्षा की थी उसमें उनको पाप या प्रमाद नहीं हुआ यह बात शाख सम्मत समझनी चाहिये।
(बोल ७ वां समाप्त) (प्रेरक)
कषाय कुशील निथ यदि मूल गुण और उत्तर गुगमें दोष नहीं लगाता तो गोतम स्वामी कषाय कुशील निप्रय होते हुए भी आनन्दके घर पर वचन बोलनेमें क्यों स्खलित हुए थे ? अतः जैसे गोतम स्वामी कषाय कुशील निपंथ होते हुए भी आनन्द के घर पर चूक गये थो उसी तरह भगवान महावीर स्वामी भी चूक सकते हैं अतः कषाय कुशील निग्रंथके न चूकने की बात मिथ्या है।
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
गोतम स्वामी जिस समय आनन्द श्रावकके घर वचन बोलनेमें चूक गये थे उस समय उनमें कषाय कुशील नियण्ठा था ही नहीं तथा चौदह पूर्व और चार ज्ञान भी उस समय गोतम स्वामीमें नहीं थे। अन्यथा चार ज्ञान और चौदह पूर्वके धनी कषाय कुशील निग्रन्थ हो कर गोतम स्वामी कदापि नहीं चूक सकते थे। इस विषयमें वहांका मूलपाठ ही प्रमाण है। वह पाठ यह है
"तएणं से भगवं गोयमे आणदेणं समणोवासएणं एवं बुत्ते समाणे संकिए कंखिए विइगिच्छा समापन्ने आनंदस्स अंतिआओ पडिनिक्खमई" अर्थ
अर्थात् आनन्द प्रापकने गोतम स्वामीसे जब यह कहा कि “आप व्यर्थ ही मुझे आलो. चना केनेका उपदेश देते हैं मेरी रायमें आपको ही आलोचना लेनी चाहिये" तब गोतम स्वामी शङ्का, कांक्षा और विचिकित्सासे युक्त होकर आनन्दके घरसे बाहर आये। यह उपर्युक्त गाथाका मूलार्थ है।
___ इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि उस समय गोतम स्वामीमें चार ज्ञान और चौदह पूर्व नहीं थो अन्यथा उनको आनन्दके वाक्यसै शङ्का, कांक्षा और विचिकित्सा क्यों उत्पन्न होती ? । वह अपने ज्ञानके प्रभावसे यथार्थ बातका तिर्णय स्वयं कर सकते थे फिर उन्हें शङ्का, कांक्षा आदि होनेका क्या कारण था ? तथा उस समय उनमें कषाय
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