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प्रायश्चित्ताधिकारः।
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कुशील नियण्ठा भी नहीं था। अन्यथा वह वचन बोलने में क्यों चूक जाते ? अतएव उपासक दशांग सूत्रमें जहां गोतम स्वामीका गुण वर्णन किया है वहां उनको चौदह पूर्व और चार ज्ञानका धनी नहीं कहा है।
कोई कोई कहते हैं कि "भगवती सूत्र, उपासक दशांग सूत्रसे पहलेका बना है उस में गोतम स्वामीको चार ज्ञान और चौदह पूर्व का धारक बतला दिया है इसीलिये उपासक दशांगमें गोतम स्वामीको चौदह पूर्व और चार ज्ञानका धारक नहीं कहा है क्योंकि ये बातें भगवती सूत्रमें कही जा चुकी हैं। जो बाते भगवती सूत्र, कही जा चुकी हैं उसे फिर उपासक दशांगमें कहनेकी क्या आवश्यकता है ? ।
उनसे कहना चाहिये कि यदि भगवतीमे कहे जानेके कारण गोतम स्वामीके चार ज्ञान और चौदह पूर्वका कथन उपासक दशांग सूत्रमें नहीं किया गया है तो भगवतीसूत्र में जिन जिन गुणोंका वर्णन किया है उन सभी का वर्णन उपासक दशांग सूत्रमें नहीं होना चाहिये परन्तु ऐसा नहीं होकर भगवतोमें कहे हुए कई गुणोंका उपासक दशांग सूत्रमें वर्णन किया है और कई गुणोंका नहीं किया है इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि भगवती सूत्रमें समुच्चय रूपसे सभी गुणोंका वर्णन किया गया है और उपासक दशांग सत्रमें आनन्दके पास जाते समय गोतम स्वामी में जितने गुम थे उन्हींका वर्णन है। नहीं तो उपासक दशांगमें फिर उन्हीं गुगोंके कहनेकी क्या आवश्यकता थी जो भगवती में कहे जा चुके हैं।
भगवती सूत्र के साथ उपासक दशांग सूत्रके पाठमें केवल इतना ही अन्तर है कि भगवतीमें चार ज्ञान और चौदह पूर्वके साथ अन्य गुणोंका कथन है और उपासक दशांगमें अन्य गुणोंका वर्णनके साथ चार ज्ञान और चौदह पूर्वका कथन नहीं है। इसके सिवाय भगवती सूत्र और उपासक दशांग सूत्र के पाठों में कुछ भी अन्तर नहीं है।
देखिये भगवतीका पाठ यह है:
"तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्त भगवओ महावीरस्स जेट्टे अन्तेवासी इन्दभूति नाम अनमारे गोतम गोतेणं सत्तुसेहे समयउस्स संहाण संहिए वज्जरिसह नाराय. संघमणे कणक पुलकणिघस पा मोरे ग्रम लवे दित्त तवे तत तवे महा तवे उराले घोरे घोर गुणे घोर तवस्ती घोर वंभचेर वासो उच्छढ़ सरोरे संखित्तविउलतेउल्लेस्ते चउद्दस पूव्वी चउण्णाणोवगये सव्वक्खर सन्निवाई"
(भ० श० १ उ०१)
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