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सद्धर्ममण्डनम् ।
अर्थ :
इसके अनन्तर उस जिन रक्षितका मन रयणा देवीके ऊपर चलायमान हो गया। रयणा देवीके कर्ण मनोहर भूषण शब्द, और प्रेम सहित सरल मृदु भाषणसे जिन रक्षितका राग (मोह) रयणा देवी पर पहलेसे भी ज्यादा बढ़ कर द्विगुण हो गया। रयणा देवीके सुन्दर स्तन, जघन, मुख, कर चरण और नयनोंके लावण्यको तथा उसके शरीरकी सुन्दरता दिव्य यौवनकी शोभा हर्षके साथ आलिङ्गन करना स्त्री चेष्टा विलास मधुर हास्य सकटाक्ष दर्शन निःश्वास सुखद अंग स्पर्श रति कूजित अंक तथा आसनादि पर बैठना हंसवत् गमन प्रणय क्रोध और प्रसन्नताको स्मरण करके वह जिन रक्षित रयणा देवी पर मोहित हो गया घह अपने वशमें नहीं रह सका। वह जिन रक्षित अवश और कर्म वशीभूत होकर पीछेसे आती हुई रयणा देवीको लजाके साथ देखने लगा।
इसके अनन्तर प्रियाके वियोगसे जिसको करुण रस उत्पन्न हो गया था और मृत्युसे जिसका गला पकड़ लिया गया था जो यमपुरो जानेके लिये तत्पर हो गया था जो रयणा देवीको प्रेम सहित देख रहा था ऐसे जिन रक्षितको उस शैलक यक्षने धीरे धीरे अपने पृष्ठसे नीचे गिरा दिया।
इसके अनन्तर मनुष्योंका घात करने वाली छपसे पूर्ण हृदय पाली उस स्यणा देवीने शैलक यक्षके पृष्ठसे गिरते हुए करुणारससे युक्त उस जिन रक्षितको अरे दास ! मरा ऐसा कहती हुई समुद्र में पहुंचनेके पहले ही अपनी भुजाओंसे ऊपर आकाशमें फेंक दिया पश्चात् अपने तीक्ष्ण शूलके ऊपर उसे रोप कर तीक्ष्ण तलवारसे खण्ड खण्ड कर डाला ।
यह ज्ञाता सूत्रके ऊपर लिखे हुए मूल पाठका अर्थ है।
यहां साफ साफ लिखा है कि रयणा देवीके भूषणोंके मनोहर शब्द और उसके कर्णमधुर वाक्योंको सुनकर जिन रक्षितका राग रयणा देवीके ऊपर पहलेसे भी अधिक हो गया तथा रयणा देवीके शरीरको सुन्दरता और स्तन जघन मुख आदि अंगोंको देख कर जिन रक्षित उसके ऊपर मोहित हो गया। मोहित होकर जिन रक्षित रयणा देवीकी मोर देखने लगा । यहां रवणा देवी पर मोहित होकर जिन रक्षितका उसकी ओर देखना कहा है अनुकम्पाके कारण देखना नहीं कहा है। अत: जिन रक्षितका रयणा देवीके ऊपर मोह उत्पन्न हुआ था अनुकम्पा नहीं उत्पन्न हुई थी इस पाठमें जो "समुप्पन्न कलुणभावं" यह जिन रक्षितका विशेषग आया है इसका अर्थ भी रयणा देवीके ऊपर प्रिय वियोगसे उत्पन्न होने वाला करुण रसका उत्पन्न होना ही है अनुकम्पा होना नहीं। अनुयोग द्वार सूत्रमें प्रियके वियोगसे करुण रसको उत्पत्ति बताई है वह पाठ यहां लिखा जाता है
"नव कव्व रसा पण्णत्ता तंजहा
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