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सद्धर्ममण्डनम् ।
तवस्सी गोसालेणं मखलिपुत्तेणं दोचपि तच्चपि एवं वुत्ते समाणे असुरुते जाव मिस मिसे माणे आयावण भूमिओ पचोप्तका पचोसकहत्ता तेया समुग्घाएणं समोहणइ समोहणइत्ता सत्तट ठपयाई पच्चो सक्का पञ्चोसकहत्ता गोसालस्स मंखलि पुत्तस्स वहाए सरीरगं तेयं णिसिरइ तएणं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलि पुत्तस्स अणुकम्पणठ्याए वेसियायणस्स वालतवस्सिस्स सा उसिण तेयलेस्सा तेय पडिसाहरणठ्याए एत्थणं अन्तरा अहं सोयलियं तेयलेस्सं निस्सरामि । जाए सा ममं सियलियाए तेय लेस्साए वेसियायणस्ल बालतवस्सिस्स साउसिण तेय लेस्सा पडिहया"
(भगवती शतक १५ उद्देशा १) अर्थ:
इसके अनन्तर गोशालक मंखलिपुत्र ने वैश्यायन बालतपस्वीको देखा । देख कर धीरे धीरे मेरे पाससे हट कर उसके पास गया वहां जाकर गोशालक मंखलिपुत्रने वैश्यायन बाल तपस्वीसे कहा कि "तुम कोई मुनि हो या जू आदिको शय्या हो ?" यह सुन कर वैश्यायन बालतपस्वीने गोशालककी बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया किन्तु मौन धारण करके रहा। पश्चात् गोशालक मंखलिपुत्रने दो तोन बार यही बात कही। यह देख कर क्रोधके मारे मिस मिस करता हुआ वैश्यायन बाल तपस्वीने आतापन भूमिसे पोछे हट कर तेजका समुदघात किया । तेजका समुदयात करके सात आठ पैर पीछे हट कर गोशालक मंखलिपुत्रका वध करने के लिये अपने शरीर सम्बन्धी तेजको गोशालकके ऊपर फेंका । हे गोतम! उस समय गोशालक मंखलिपुत्रकी अनुकम्पाके लिये उस पर आती हुई तेजोलेश्याके निवारणार्थ मैंने शीतललेश्या छोडी। मेरी शीतललेश्या से वैश्यायन बाल तपस्वी की उष्ण तेजो लेश्या प्रतिहत हो गई। यह इस प ठका अर्थ है।
___ इसमें उष्ण तेजो लेश्याके वर्णनमें तेजके समुद्घात होनेका कथन है परन्तु शीतललेश्याके प्रकट करनेमें तेजके समुद्घात होनेका जिक्र नहीं है इसलिये शीतल लेश्यामें तेजके समुद्घात होनेकी बात अप्रामाणिक है। जब कि शीतल लेश्याके प्रकट करनेमें तेजका समुद्घात नहीं होता तब फिर उसमें जघन्य तीन और उत्कृष्ट पांच क्रियाएं कैसे लग सकती हैं ? अतः शीतल तेजो लेश्याके प्रकट करनेमें जघन्य तीन और उत्कृष्ट पांच क्रिया लगनेकी प्ररूपणा एकान्त मिथ्या समझनी चाहिये ।
(बोल १ समाप्त)
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