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अनुकम्पाधिकारः। कारवेह कारेत्ता कारवेत्ता एमाणत्तियं पञ्चपिण्णाहि, निज्जाइस्सामि समणं भगवं महावीरं अभिवंदए"
(उवाई सूत्र)
अथ:
इसके अनन्त बिम्बसारका पुत्र कौणिक राजाने अपने सेनापतिको बुला कर कहा कि हे देवानुप्रिय ! मेरे प्रधान हस्ति रनको शोघ्र तैयार करो और हाथी, घोड़े, स्थ तथा प्रधान योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना सजाभो । सुभद्रा आदि रानियोंके जानेके लिये प्रत्येकके निमित्त अलग अलग रथ जोता कर खड़ा करो । झाडू बहादू सेचन लेपन आदिसे चम्पा नगरीके बाजार सड़क गलो आदिका संस्कार कराओ। सेनाको यात्रा देखनेके लिये आने वाले दर्शक लोगोंके निमित्त मंच आदि बंधवा दो । कृष्णागुरु धूप आदिसे पुरीको सुगन्धित करो। मेरी इस आज्ञाका शीघ्र पालन करा कर सूचना दो मैं श्रमण भगवान महावीर स्वामीका चन्दन करनेके लिये जाऊंगा। इस पाठका यह अर्थ है।
इस पाठमें कहा है कि "विम्बसार पुत्र राजा कौणिकने भगवान महावीर स्वामी का वन्दन करनेके लिये चतुरंगिणी सेना सजाई और पुरीका संस्कार कराया था" जब कौणिकके मनमें भगवान महावीर स्वामीके वन्दनका भाव उत्पन्न हुआ तब उसने सेना सजायी और पुरीका संस्कार कराया। सेना सजाना और पुरीका संस्कार कराना आज्ञा बाहर है तथापि इन कार्यों से भगवान महावीर स्वामीका वन्दन सावद्य नहीं होता क्योंकि ये कार्य दुसरे हैं और वंदन दूसरा है उसी तरह अनुकम्पाके भाव आने पर जो कार्य किया जाता है वह कार्य दूसरा है और अनुकम्पा दूसरी है इस लिये अनुकम्पाके निमित्त किये जाने वाले कार्यके आज्ञा बाहर होने पर भी अनुकम्पा आज्ञा बाहर या सावद्य नहीं होती।
सूर्याभदेवने भगवान महावीर स्वामीका वन्दन करनेके लिये जाते समय सुघोष नामक घण्टा बजाकर देवोंको सूचित किया था। वह पाठ यह है : -
"सरियाभे देवे गच्छइणं भो सूरियाभेदेवे जम्बूदीवं २ भारह वासं आमलकप्पं नगरी अम्वसालवणं चेइयं समणं भगवं महावीरं
अभिवन्दए । तं तुम्भेऽपिणं देवानुप्पिया! सव्विहिए अकाल परि• होणाचेव सरियामरस अंतियं पाउन्भह" .
(राज प्रश्नीय सूत्र)
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