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सद्धर्ममण्डनम् ।
ने जहां चतुरंगिणी सेना सजाई है और पुरीका संस्कार कराया है वहां भी "निज्जाइस्सामि समणे भगवं महावीरं अभिवन्दए” यह पाठ आया है । इस पाठमें कौणिक राजा ने भगवान महावर स्वामी की वन्दनाके लिये सेना सजाने और पुरीका संस्कार करानेकी आज्ञा दी है। यदि अनुकम्पाके निमित्त किये जाने वाले कार्यासे अनुकम्पा संलग्न है तो फिर वन्दनाके निमित्त किये जाने वाले कार्यासे वन्दनाको भी संलग्न मानना चाहिये और जैसे अनुकम्पाके निमित्त किये जाने वाले कार्यसे संलग्न होकर अनुकम्पा सावध होती है उसी तरह वन्दनाके निमित्त किये जाने वाले कार्यो से संलग्न होकर वंदना भी सावध हो जानी चाहिये । परन्तु यदि वन्दनाके निमित्त किये जाने वाले, सेना सजाने और पुरीका संस्कार कराने रूप काय्यसे वन्दनाको संलग्न नहीं मानते और वन्दनाको सावद्य नहीं कहते तो उसी तरह अनुकम्पाके निमित्त किये जाने वाले कार्यसे अनुकम्पाको भी संलग्न नहीं मानना चाहिये और अनुकम्पाको भी सावद्य नहीं कहना चाहिये।
__ वास्तवमें जैसे भगवानकी वन्दनाके लिये किया जाने वाला कार्य दूसरा है और भगवानकी वन्दना दूसरी है उसी तरह अनुकम्पाके लिये किया जाने वाला कार्य दूसरा है और अनुकम्पा दूसरी है अतः जैसे तीर्थकरकी वन्दनाके लिये किये जाने वाले कार्य के आज्ञा बाहर होने पर भी तीर्थकरकी वन्दना आज्ञा बाहर नहीं है उसी तरह अनुकम्पाके निमित्त किये जाने वाले कार्याके आज्ञा बाहर होने पर भी अनुकम्पा आज्ञा बाहर और सावद्य नहीं है।
___ भगवान महावीर स्वामीका वन्दन करनेके लिये कौणिक राजाने चतुरंगिणी सेना सजाई थी और पुरीका संस्कार कराया था। वह पाठ यह है :
"तएणं कुणिए राया भिंभसार पुत्ते वलवाउअं आमंतेइ आमंतेत्ता एवंवयासी-खिप्पामेव देवाणुप्पिया। अभिसेक हत्थि रयणं परिकप्पेहि, हय, गयरह पवर जोह कप्पियंच चाउरंगिणीं सेण्णं सन्नाहीहि । सुभद्दा पमुहाणय देवीणं वाहिरियाउ उवट्ठाण सालाए पडिएक एडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइ जाणाई उवट्ठवेह । चम्पं नयरों सब्भिंतर वाहरियं असित्त सित्त सुइ समह रथंतरावण वीहियं मंचाई मंच कलियं नाना विह राग उच्छिय झय पहागाई पडामंडियं लाउल्लोइयमहियं गोसीस सरस रत्तचंदन जाव गंधवहिभूयं करेह
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