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सद्धर्ममण्डनम् ।
अर्थ:
सूर्याभ देवने भगवान महावीर स्वामीकी वन्दना करनेके लिये जाते समय सुघोष नामक घण्टा बजा कर अपने विमान वासी देवताओंको सूचित किया कि हे देवानुप्रियो ! सूर्याम देवता जम्बू द्वीपके भारतवर्ष में भगवान् महावीर स्वामीको वन्दना करनेके लिये आम्रकल्पा नगरीके आम्रशाल नामक उद्यानमें जा रहा है अतः आप लोग भी अपनी सम्पूर्ण ऋद्धियोंसे युक्त होकर शीघ्र ही सूर्याभ देवके समीप आ जावें ।
इस पाठमें कहा है कि "सूर्याभदेवने भगवान महावीर स्वामीकी वन्दनाके लिये जाते समय सुघोष नामक घण्टेको बजा कर देवताओंको सूचना दी थी"। जब सूर्याभ देवके हृदयमें भगवान महावीर स्वामी को वन्दन करने का भाव उत्पन्न हुआ तब उसने घण्टा बजाकर देवोंको सूचना दी थी। घण्टा बजानेके लिये मुनि आज्ञा नहीं देते इस लिये घण्टा बजाना आज्ञा बाहर है । जो लोग अनुकम्पाके भाव आनेसे जो कार्य किया जाता है उसकी वजह से अनुकम्पाको सावध कहते हैं उनके मतमें भगवानकी वन्दना भी सावध कहनी चाहिये क्योंकि वन्दनाके भाव आनेसे ही सूर्याभदेवने सुघोष नामक घण्टा बजाया था । यदि घण्टा वजाना दूसरा है और वन्दना करना दूसरा है इस लिए घण्टा बजाना आज्ञा बाहर होने पर भी वन्दना आज्ञा बाहर नहीं है तो उसी तरह अनुकम्पा दूसरी है और उसके लिये जो कार्य किया जाता है वह दूसरा है इस लिये अनुकम्पाके लिये किये जाने वाले कार्यके आज्ञा बाहर होने पर भी अनुकम्पा आज्ञा बाहर और सावद्य नहीं है।
। सूर्याभकी आज्ञा पाकर देवता लोग जब भगवानका दर्शन करनेके लिये सूर्याभ के समीप आये हैं उस समयका वर्णन करने के लिये यह पाठ आया है :
"एयम सोचा णिसम्म हट्ट तु जाव हियया अप्पेगइया वन्दन वत्तियाए अप्पेगइया पूयण वत्तियाए अप्पेगइया सकारवत्तियाए अप्पेगइया असुयाई सुगिस्सामो सुयाई अट्ठाई हेउई पासिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छिस्सामो अप्पेगइया सूरियाभस्स वयण मणुपत्तमाणा अप्पेगहया अन्न मन्न मणुपत्तमाणा अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया धम्मोत्ति अप्पेगइया जियमेयंत्ति कटु सवड्ढिए जाव अकाल परिहीणाव मुरियाभस्स अन्तियं पाउन्भवति"
(राज प्रश्नीय सूत्रम् )
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