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अनुकम्पाधिकारः ।
व्रतमें अतिचार आता है अतः धारिणी रानीकी गर्भानुकम्पाको मोह अनुकम्पा और सावद्य अनुकम्पा बताना अज्ञानियोंका कार्य्य है ।
( बोल ३२ वां समाप्त )
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( प्रेरक )
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १७१ पर ज्ञाता सूत्र अध्ययन १ का मूल पाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं
"अथ इहां अभयकुमारनी अनुकम्पा करी देवता मेह वरसायो, ए पिण अनुकम्पा कही ते सावद्य छै के निरवय छै एतो प्रत्यक्ष आज्ञा बाहिरे छै" (भ्र० पृ० १७१ ) इसका क्या समाधान ?
(प्ररूपक )
अभयकुमारने तीन दिन तक उपवास किया था और ब्रह्मचर्य धारण पूर्वक तीन दिन तक बैठा रहा । उसका कष्ट देख कर देवताके हृदयमें अनुकम्पा उत्पन्न हुई तथा अभयकुमारका जीवके साथ उस देवता के पूर्वजन्ममें जो स्नेह, प्रीति, ओर बहुमान थे उनका स्मरण करके उसके हृदयमें क्षोभ उत्पन्न हुआ था । मूलपाठमें यही बात कहीं है अनुकम्पा लाकर पानी वरसाना नहीं कहा है परन्तु जीतमलजी अनुकम्पा लाकर पानी वरसानेकी बात कहते हैं इनकी यह बात मिथ्या है मूलपाठमें पानी बरसानेका कारण अनुकम्पा नहीं किन्तु प्रीति कही गयी है । यह मूल पाठ लिख कर स्पष्ट किया जाता है:"अभयकुमार मणुकम्पमाणे देवे पूर्व्वभव जणिय नेहपीई वहुमान जाय सोगे" ( टीका )
हा ! तस्य अष्टमोपवास रूपं कष्ट विद्यते इति विकल्पयन् "
अर्थात् मेरे मित्रको अनुमोपवास जनित कष्ट हो रहा है यह सोचते हुए उस देवताके हृदयमें पूर्वजन्मकी प्रीति स्नेह बहुमान ( गुणानुराग) के स्मरण होनेसे मित्र विरह रूप खेद उत्पन्न हुआ ।
यहां अनुकम्पा करके पानी वरसाना नहीं लिखा है आगे चल कर मूलपाठमें पानी बरसाने की बात आई है वहां प्रीतिके कारण पानी बरसाना कहा है अनुकम्पा के कारण नहीं वह पाठ यह है
"अभयं कुमारं एवं वयासी एवं खलुदेवाणुपिया ! मए तव प्पियट्टयाए सगज्जिया सफुसिया सविज्जुया दिव्बा पाउससिरी विउच्चिया "
( ज्ञाता अ० १ )
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