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सद्धर्ममण्डनम् ।
( प्ररूपक )
श्रीकृष्णजी नेमिनाथजी की वन्दना के निमित्त जा रहे थे रास्ता में उन्होंने जरासे अति दुःख और कांपते हुए एक वृद्धको देखा उसे देख कर कृष्णजीके हृदयमें अनुकम्पा उत्पन्न हुई और उन्होंने अपने हाथोंसे ईंट उठा कर बुढ्ढे के घर पर रक्खा था। यह श्रीकृष्णजीकी अनुकम्पा स्वार्थरहित थी इसे सावद्य सिद्ध करनेके लिये भ्रमविध्वंसनकार की ओर से यह कुहेतु लगाया जाता है कि “ईंट उठा कर रखने की साधु आज्ञा नहीं देते इसलिये श्रीकृष्णजीकी बुड्ढे पर अनुकम्पा सावद्य थी" परन्तु यह बिलकुल अयुक्त है ईंट उठाने की क्रियाके सावध होनेसे अनुकम्पा सावद्य नहीं हो सकती क्योंकि ईंट उठाने की क्रिया भिन्न है और अनुकम्पा भिन्न है, दोनों एक नहीं हैं इसलिये ईंट उठाने की क्रियाके सावद्य होनेसे अनुकम्पा सावध नहीं हो सकती । श्रीकृष्णजी
मिनाथजीका दर्शन करने के लिये जत्र इच्छा उत्पन्न हुई तब उन्होंने चतुरंगिणी सेना सजायी थी । उस सेना सजाने रूप काय्र्यकी साधु आज्ञा नही देते परन्तु तीर्थकर के वन्दनको तो अच्छा जानते हैं । वह तीर्थंकरका वन्दन जैसे सेना सजाने रूप काय्यैके साव होने पर भी सावद्य नहीं समझा जाता क्योंकि सेना सजाना दूसरा
है और वन्दन करना उससे भिन्न है उसी तरह ईंट उठा कर रखने की आज्ञा साधु नहीं देते परन्तु अनुकम्पा करने की आज्ञा देते हैं अतः ईंट उठाने की क्रिया का नाम लेकर अनुकम्पाको सावद्य बताना मिथ्या है। यदि ईंट उठाने की क्रियाके कराण अनुकम्पा सावध हो तो फिर सेना सजा कर आने जाने की क्रियाके कारण नेमिनाथजी का वन्दन भी सावध होना चाहिये परन्तु जैसे सेना साज कर आने जानेसे वन्दन सावध नहीं होता उसी तरह ईंट उठानेसे अनुकम्पा भी सावद्य नहीं होती ।
उत्तराध्ययन सूत्रके २९ वें अध्ययनमें वन्दनका फल उच्च गोत्र बांधना कहा है। और भगवती सूत्रमें अनुकम्पाका फल सात वेदनीय कर्मका बन्ध बतलाया है इसलिये ये दोनों ही काय्ये अच्छे हैं अनुकम्पा करना सावध नहीं है अतः बुढ्ढे पर श्रीकृष्णजीकी अनुकम्पाको सावद्य बताना अज्ञानका परिणाम है ।
( बोल ३० )
(प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १६९ पर उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन १२ गाथा ८ को लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं
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