________________
अनुकम्पाधिकारः।
२४३
विज्वर शून्यं पुनः ध्रातं सुभिक्षं शिवमितिवा उपसर्ग रहितं कहानु भवेयुरेतानि वातादीनि मावा भवेयुरिति"। अर्थ:
घाम (गर्मी) आदिसे पीड़ित होकर साधु इन बातोंको न कहे क्योंकि इसमें अधिकरणादि दोष होता है। वायु आदिके गलने पर प्राणियोंको पीड़ा होती है । यद्यपि साधुके कहने से वायु आदि नहीं चलते तथापि साधुको आर्तध्यान करना उचित नहीं है इसलिये वह इन बातों को नहीं कहे वे बातें ये हैं:-(१) मलय मारुत आदि (२) वर्षा (३) शीत (४) उष्ण (६) राजरोग दूर होना (६) समिक्ष होना (७) उपसर्ग रहित होना । इन सात बातोंके होने या नहीं होनेकी बात साधुको नहीं कहनी चाहिये । यह उक्त गाथाका दीपिकानुसार अर्थ है।
इसमें अपनी पीडाको निवृत्तिके लिये साधुको इन सात बातोंकी प्रार्थना करनेका निषेध किया है परन्तु असंयति प्राणियोंकी रक्षाको पाप मान कर उसकी निवृत्तिके लिये नहीं इस लिये इस गाथाका नाम लेकर जीवरक्षा करनेमें पाप कहना मिथ्या है। इस गाथाकी टीकामें लिखा है:
"एतानि वातादीनि मावा भवेयुरिति धर्माभिभूतो नो वदेद् अधिकरणादि दोषप्रसंगात् । वातादिषु सत्सु सत्त्वपीडा प्राप्तेः । तद्वचनत स्तथाऽभवनेऽप्या ध्यान भावादिति सूत्रार्थः।
अर्थात् वायु आदिके चलने पर प्राणियोंको पीड़ा होती है इसलिये घाम (गर्मी ) मादिसे पीड़ित होकर साधु वायु आदि सात बातोंके होने वा न होनेकी प्रार्थना नहीं करे क्योंकि इसमें अधिकरण आदि दोषों का प्रसङ्ग होता है। यद्यपि साधुके कहनेसे ये सात बातें नहीं हो जाती तथापि आर्तध्यान करना साधुको उचित नहीं है इसलिये वह इन सात बातोंको न कहे।
___ यहां गाथाका अभिप्राय बतलाते हुए टीकाकारने भी यही कहा है कि "अपनी पीड़ाकी निवृत्ति के लिये साधुको इन सात बातोंकी प्रार्थना नहीं करनी चाहिये परन्तु प्राणियोंकी रक्षाको पाप जान कर उसकी निवृत्तिके लिये इन सात बातों की प्रार्थना का निषेध नहीं किया है। टीकाकारने यह भी लिखा है कि "वायु आदिके चलने पर प्राणियोंको पीड़ा होती है" इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि दूसरे प्राणीको पीड़ा न हो इसलिये घाम आदिसे स्वयं पीड़ा पाते हुए भी साधु वायु आदि सात बातोंकी प्रार्थना नहीं करते। यहां जीवोंकी रक्षा नहीं वर्जित की गयी है प्रत्युत जीवों की पीड़ा वर्जित की गयी है इस लिये इस गाथा का नाम लेकर जीव रक्षामें पाप सिद्ध करना अज्ञान का परिणाम है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com