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अनुकम्पाधिकारः। सारथिना मोचितेषु सस्वेषु परितोषितोऽसौ यत्कृतवांस्तदाह” अर्थात भगवान्का अभिप्राय समझ कर जब सारथीने उन जीवोंको मुक्त कर दिया तब भगवान्ने सारथी पर प्रसन्न होकर जो काय्य किया था वह वीसवींगाथामें कहा है। वीसवींगाथामें भगवान्का आशय समझ कर उन जीवोंको मुक्त करना, और इस कार्य्यसे प्रसन्न होकर भगवान् का सारथीको इनाम देना स्पष्ट कहा गया है। यदि जीवरक्षा करनेमें पाप होता तो भगवान उन जीवोंकी रक्षा करनेके कारण सारथी पर प्रसन्न हो कर उसे इनाम क्यों देते ? तथा उन जीवोंकी रक्षाके लिये भगवान का भाव क्यों होता ? अत: उक्त गाथाओंसे मरते जीव की रक्षा करना परम धर्म सिद्ध होता है । जो लोग जीवरक्षा को एकान्त पाप कहते हैं उन्हें उत्सूत्र वादी और निई य समझना चाहिये ।
(बोल ७ वां समाप्त) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १२७ के ऊपर ज्ञाता सत्रके प्रथम अध्ययनका मूलपाठ लिख कर उसके अवतरणमें लिखते हैं कि “वली मेषकुमाररो जीव हाथीरे भवे सुसलारी अनुकम्पा करी परीत संसार कियो । अने केई कहे मण्डलामें घणा जीव बंच्या त्यां घणा प्राणी री अनुकम्पाई करी परीत संसार कियो छै ते सूत्रार्थना अजाण छै एक सुसलारी अनुकम्पा दयाकरी परीत संसार कियो छै। (भ्र० पृ० १२७)
इसका क्या उत्तर। (प्ररूपक)
हाथीने अकेले शशककी अनुकम्पासे परीत संसार किया है बहुत जीव, जो मण्डलमें बचे थे उनकी अनुकम्पासे संसार परीत नहीं किया यह कथन अविवेकका सब से बड़ा उदाहरण है। जब भ्रम विध्वंसन कार एक जीव शशककी अनुकम्पासे संसार परिमित होना स्वयं ही स्वीकार करते हैं तब अनेक जीवोंकी अनुकम्पा से डरनेकी क्या बात है। एक प्राणीकी अनुकम्पासे जब संसार परीत हो सकता है तो अनेक जीवोंकी अनुकम्पासे और भी अधिक धर्म ही होगा। यह एक ऐसी साधारण बात है कि जिसे बालक भी समझ सकता है। खैर ! अब देखना यह है कि हाथीने अकेले शशककी अनुकम्पा की या बहुतसे जीवों की ? यदि हाथीको शशककी ही अनुकम्पा करनी इष्ट थी दूसरोंकी नहीं तो वह अपना उठाया हुआ पैर शशकके ऊपर नहीं रख कर दूसरे प्राणी पर रख देता परन्तु उसने ऐसा नहीं करके अढाई दिन तक पैर ऊपर ही उठाये रक्खा इससे स्पष्ट है कि हाथी शशकके साथ और भी प्राणियोंकी रक्षा करना चाहता था।
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