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दानाधिकारः।
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करके मुख वस्त्रिका आदि सभी धर्मापकरण साधुके आचार पालनार्थ रखने चाहिये और साधुके तुल्य वेष बना कर श्रमण निग्रन्थोंके धर्मका शरीरसे स्पर्श और पालन करते हुर विचरना चाहिये।
इस पाठमें ११ वी प्रतिमाधारीको साधुके तुल्य आचार पालनार्थ धर्मोपकरण रखनेका विधान किया है और पौषधोपवासमें अतिचारको हटानेके लिये पूजनी आदि धर्मोंपकरणोंकी आवश्यकता होती है अतः श्रावकके धर्मोपकरणोंको एकान्त पापमें स्थापन करना कितनी विशाल मूर्खता है यह बुद्धिमान जीव स्वयं समझ सकते हैं ।
(बोल ३८ वां) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ११५ के ऊपर लिखते हैं “ए पूजणी आदिक सामायकमें राखे ते अब्रतमें छै एतो सामाय कमें शरीरनी रक्षा निमित्ते पूजणी आदिक उपधि राखे छै ते पिण आपरी कचाई छै परंधर्म नहीं ते किम जे पूजनी आदिक न राखे तो काया स्थिर राखणी पडे अने कायास्थिर राखनेरी शक्ति नहीं मच्छरादिक ना फस खमणी आवे नहीं ते मांटे पूंजनी आदिक राखे मच्छरादिक पुजी खाज करे ए तो शरीरनी रक्षा निमित्ते पूजे धर्म हेतु नहीं जो पूंजणी विना दया न पले तो अढाई द्वीप वारे असंख्याता तिर्यकच श्रावक छै सामायक ब्रत पाले छै त्यांरे पूजणी दीसे नहीं जे दयारे अर्थे पूजणी राखणी कहे त्यारे लेखे अढाई द्वीप वारे श्रावकारे दया किम पले" इसका क्या समाधान ?
(भ्र० पृ० ११५-११६) (प्ररूपक)
पौषध व्रत करता हुआ श्रावक, अपने शरीरकी रक्षाके लिये नहीं किन्तु उपासक दशांग सूत्रके पूर्वोक्त मूल पाठानुसार पूजन किये बिना होने वाले अतिचारको दूर करने के लिये पूजनी आदि धर्मोपकरण रखता है । अतः पूजनी आदि धर्मोपकरणोंको शरीर रक्षाका साधन कायम करके उन्हें अबतमें या एकान्त पापमें स्थापन करना मिथ्या है।
पूंजनी अपनी शरीर रक्षाका कोई प्रधान साधन नहीं है इसके बिना भी शरीर रक्षा हो सकती है परन्तु इसके बिना पूजन नहीं किया जा सकता और पूजन किये बिना श्रावकके व्रतमें अतिचार होता है उसकी निवृत्ति के लिये पूजनी रखना श्रावकके लिये आवश्यक होता है । जो लोग पूजनीको शरीर रक्षाका साधन मान कर पौषध व्रत करते समय शरीर रक्षार्थ उसका ग्रहण किया जाना बतलाते हैं उनके मतमें पागल कुत्ता आदि से शरीर रक्षा करने के लिये श्रावकको एक डंडा भी रखना चाहिये तथा दूसरे दूसरे
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