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दानाधिकारः।
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(प्ररूपक)
एयारहवी प्रतिमाको धारण करने वाला श्रावक, अठारह पापोंका सम्पूर्ण रूपसे त्याग किया हुआ, दविध यति धर्मों का अनुष्ठान करने वाला बिलकुल साधुके सदृश होता है । यह बड़ा ही पवित्रात्मा और सुपात्र है अतएव शास्त्रमें इसे श्रमणभूत यानी साधुके सदृश कहा है। इसका आचार विचार बिलकुल साधुके सदृश होता है अतः इसे भोजन देनेसे एकान्त पाप होने की बात मिथ्या है । ११ वी प्रतिमाधारीको सूझता आहार देना, यदि एकान्त पापका कार्य है तो तीर्थकर देवने इसे सूझता आहार लेनेका विधान क्यों किया है ? क्योंकि एकान्त पापमय काय्यका विधान तीर्थकर नहीं करते उसका निषेध करते हैं अत: एग्यारहवी प्रतिमाधारी श्रावकका सूझता आहार लेना और उसे सूझता आहार देना दोनों ही धर्मके काय्य हैं एकान्त पापके नहीं।
कई आज्ञानी, यह भी कहते हैं कि “११ प्रतिमाओंका विधान, तीर्थकरने नहीं किया है किन्तु ये प्रतिमायें श्रावकोंके कपोल कल्पित हैं। उन्हें मिथ्यावादी जानना चाहिये ये ११ प्रकारकी प्रतिमाएं तीर्थंकरसे विधान की गई हैं श्रावकोंके कपोल कल्पित नहीं हैं।
इस विषयमें दशाश्रुत स्कन्ध सूत्रका मूलपाठ प्रमाण है वह पाठ यह है:
"सुयं मे आउसं ! तेणं भगवथा एवमक्खाइ इह खलु योरेहिं भगन्तेहिं एग्गारस उवासग पडिमाओ पण्णत्ताओ" ।
(दशाश्रु त स्कन्ध सूत्र, अ० ६) , अथ:____सुधर्मा स्वामी, जम्बू स्वामीसे कहते हैं कि हे आयुष्मन् ! इस जिन शास्त्र में स्थविर भगधन्तोंने जिस प्रकार श्रावकोंकी एग्यारह प्रतिमायें बतलाई हैं उसी तरह तीर्थङ्कर भगवान्ने भी कही हैं यह मैंने सुना है।
इस पाठमें ११ प्रतिमाओंका श्री तीर्थक्कर देवसे विधान किया जाना कहा है अतः इन्हें श्रावकोंके कपोल कल्पित बतलाना एकान्त मिथ्या है।
__ आनन्द श्रावकने कहा है कि "मैंने शास्त्रानुसार और कल्पानुसार इन प्रतिमाओं का आचार पालन किया है वह पाठ यह है:
तएणं से आणंदे समणोवासए उवासग पडिमाओ उपसंपजित्ताणं विहरइ । पढम उवासग पडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहा मग्गं अहा तच सम्मं कोएण पासेइ पालेइ सोहइ तिरइ कित्तह आराहेई"
(उपासक दशांग अ०१)
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