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मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
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__ तो इसका उत्तर यह है कि सुमुख गाथापतिके विषयमें जो त्रिपाक सूत्रमें मूलपाठ आया है वही प्रमाण है । यह बात मूलपाठ लिख कर बतलाई जाती है। वह पाठ यह है।
"तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसाणं थेराणं अन्तेवासी सुदत्ते नामं अणगारे उराले जाव संखित्त विउल तेउलेसे मासं मासेणं खममाणे विहरन्ति । तत्तेणं सुदत्ते अणगारे मासखमणपारण गंसि पढमाए पोरसीए सज्झायं करेति जहा गोयमसामी तहेव सुधम्मेथेरे आपुच्छति जाव अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्स गिहं अणुपवि । तत्तेणं सुमुहे गाहावइ सुदत्तं अणगारं एज्जमाण पासइ पासित्ता हतु आसणाओ अन्मुट्ठति अन्भुट्टिता पादपीठाओ पचोसहति पाओयाओ मुयह एगसाडिय उत्तरासङ्ग करेइ सुदत्तं अनगारं सत्तट्ठपयाई पच्चुगच्छइ तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिण करेइ वंदइ नमसइत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता सयहत्थेणं विउलेण असण पाण खाइम साइम पडिलाभेस्सामीति तु? ३ तत्तेणं तस्स सुमुहस्स तेण' व्वसुद्धणं तिविहेणं तिकरण सुद्धणं २ सुदत्ते अणगारे पडिलामएसमाणे परीत्त संसारकए मणुस्साउए निवद्ध"
(विपाक सूत्रसुख विपाक) अर्थः
उस समय धर्म घोष नामक स्थविरके अन्तेवासी शिष्य सुदत्त नामक अनगार उदार यावत् तेजो लेश्याको गुप्त रखने वाले मास मासका क्षमण करते हुए जीवन व्यतीत करते थे वे मासक्षमण तपस्याके पारणेके दिन प्रथम पौरुषीमें स्वाध्याय करते थे शेष गोतम स्वामीकी तरह समझना चाहिये । वह सुदत्त अनगार अपने गुरु धर्मघोष स्थविरसे पूछ कर यावत् गोचरीके निमित्त जाते हुए सुमुख नामक गृहस्थके घरपर गये। अनन्तर सुमुख गाथापतिने सुदत्त अनगारको आते हुए देख कर हर्षके साथ आसन छोड़ दिया और पादपीठसे नीचे उतरकर पादुकाको छोड़कर एक शाटिक वस्त्रकी उत्तरासंग करके मुनिके सम्मुख सात आठ पैर तक आगे गया । दाहिनी ओरसे उसने मुनिकी तीन वार प्रदक्षिणादी और मुनिको बन्दन नमस्कार करके वह अपने भोजन गृहमें आया। वहां उसको इस बातके लिए बहुत हर्ष हो रहा था कि आज मैं अपने हाथसे मुनिको
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