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सद्धर्ममण्डनम् ।..
- यहां. मूलपाठ और उसकी टीकामें तत्त्वार्थश्रद्धान रूप सम्यक्त्वको धर्मध्यानका लक्षण कहा है वह तत्त्वार्थ श्रद्धान मिथ्यादृष्टि जीवमें नहीं होता इसलिये मिथ्यादृष्टिमें धर्मध्यान बतलाना उक्त मूलपाठ और उसकी टीकासे विरुद्ध है। ..... .. . .. ., ... यदि कोई कहे कि उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३४ की ३१ वीं गाथामें धर्मध्यान होना शुक्ललेश्याका लक्षण कहा है और शुक्ललेश्या मिथ्यादृष्टिमें भी पाई जाती है फिर उसमें धर्मध्यान क्यों नहीं होता ? तो इसका उत्तर यह है कि उत्तराध्ययन सूत्रकी उस गाथामें विशिष्ट शुक्ल लेश्याका लक्षण कहा है जो कि संयमी पुरुषोंमें पाई जाती है सामान्य शुक्ललेश्याका नहीं। यह बात उस गाथा और उसकी टीकासे स्पष्ट ध्यानमें आ जावेगी इसलिए यहां वह लिखी जाती है
"अरुहाणि वजित्ता धम्मसुकाइ झायए . पसंत चित्ते दंतप्पा समिए गुत्तेय गुत्तिसु" सरागे वीय रागेवा उपसंते जिएन्दिए एय जोग समाउत्तो सुकलेस्संतुपरिणमे".....
(उत्तराध्ययन अ० ३४ गाथा. ३१-३२) जो पुरुष आर्तरुल ध्यानको त्याग कर धर्मध्यान और शुक्लध्यानको ध्याता है तथा अपने चित्त और इन्द्रियको वशमें रखते हुए समितिसे युक्त है। जिसने मनोगुप्ति आदिके द्वारा अपने समस्त व्यापारको रोक लिया है वह चाहे सरागी हो बीतरागी हो या इनसे अन्य उपशान्त और जितेन्द्रिय हो वह शुक्ललेश्याको प्राप्त होता है। यह ऊपर लिखी हुई गाथाओंका अर्थ है।
इनमें कहे हुए शुक्ललेश्याके लक्षण विशिष्ट शुक्ल लेश्याके हैं सामान्य शुक्लरेश्या के नहीं अतएव इस गाथाकी टीकामें टीकाकारने लिखा है कि "विशिष्ट शुक्ल लेश्यापेक्षयैवं लक्षणाभिधान मिति न देवादिभिर्व्यभिचारः" । .. अर्थात् इन गाथाओंमें विशिष्ट शुक्ललेश्याके लक्षण कहे हैं इसलिये शुक्ललेशी देवताओंमें गाथोक्त लक्षणोंके न मिलने पर भी कोई दोष (व्यभिचार ) नहीं है। यहां टीकाकारने स्पष्ट लिखा है कि गाथोक्त लक्षणं विशिष्ट शुक्ललेश्याके है सामान्य शुक्ललेल्या के नहीं इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि ये लक्षण संयमधारी विशिष्ट शुक्ललेशी मुंनियोंकी शुक्ललेश्याके हैं सामान्य शुक्लरेश्याके नहीं तथापि यदि कोई इस टीकाको प्रमाण न मान कर सभी शुक्ललेश्याओंका गाथोक्त लक्षण बतावे तो उससे कहना चाहिये कि इन गाथाओंमें शुक्ललेश्याके लक्षण शुक्लध्यान, समिति गुप्ति, सर्वसावंद्य योगोंका परित्याग भी कहे हैं इन्हें भी प्रथम गुण स्थानमें तुम क्यों नहीं मानते ? यदि कहो कि शुक्लध्यान आदि
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