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दानाधिकारः।
११५ आदि दान अधर्मदानमें नहीं हो सकते ऐसी दशामें एक धर्मदानके सिवाय बाकीके नौ ही दानोंको अधर्मदानमें स्थापन करना अज्ञानका परिणाम है।
__ जो लोग एक धर्मदानको छोड़ कर शेष नौ दानोंको अधर्ममें गिनते हैं उनसे कहना चाहिये कि जो दान, भक्ति भावसे प्रत्युपकारकी आशाके विना पञ्च महाव्रतधारी साधुको दिया जाता है वही मुख्य रूपसे एकान्त धर्मदान है। परन्तु जो लज्जावश या अनुकम्पा करके साधुको दिया जाता है वह दान, दाताके परिणामानुसार मुख्यरूपसे लज्जादान और अनुकम्पादान है । यह दान, धर्मदानसे कशंचित् भिन्न है क्योंकि इसमें दाताका परिणाम लज्जा और अनुकम्पाका भी है अत: तुम्हारे हिसाबसे इस दानका फल अधर्म ही होना चाहिये यदि कहो कि "किसी भी परिणामसे साधुको दान देना एकांत धर्मदान है इसलिये उक्त दानोंका फल अधर्म नहीं है" तो नागश्री ब्राह्मणीने मुनि को मारनेके परिणामसे कडुवा तुम्बा का शाक दिया था और साहुकारकी स्त्रीने विषय भोग कराने की लालसासे अर्णक मुनिको मोदक दिये थे फिर इन दानोंका फल भी अधर्म न होना चाहिए यदि कहो कि नागश्रीने मुनिको मारनेके परिणामसे, और साहूकार की स्त्रीने मुनिको भ्रष्ट करने के भावसे दान दिये थे इसलिये उनके दान उनके परिणामानुसार अधर्मदान थे धर्मदान नहीं, तो उसी तरह यह भी समझो कि जो दान, लज्जावश या अनुकम्पा करके मुनिको दिया जाता है वह भी दाताके परिणामानुसार लज्जादान और अनुकम्पादान ही है । तुम्हारे सिद्धांतानुसार इन दानोंमें भी अधर्म ही होना चाहिये परन्तु यह शास्त्र संमत नहीं है इन दानोंमें भी दाताके परिणामानुसार धर्म ही होता है। अतः धर्मदानको छोड़ कर शेष नो दानोंको अधर्म में कायम करना अज्ञान है। अनुकम्पा दान साधु भी देते हैं इसका प्रमाण नीचे दिया जाता है।
"अणुकम्पं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता तंजहा-तवस्सि पडिणीए, गिलाण पडिणीए, सेहपडिणीए"
(ठाणाङ्ग ठाणा ३ उद्देशा ४) अर्थात् तीन मनुष्य अनुकम्पा करने योग्य होते हैं। तपस्वी क्षपक, रोग आदिसे ग्लान, और नवदीक्षित शिष्य, इनकी अनुकम्पा न करे और न करावे तो वह वैरी समझा जाता है।
इस पाठके अनुसार यदि कोई, रोग आदिसे ग्लान और तपस्वी क्षपक, तथा नवदीक्षित शिष्य पर अनुकम्पा करके दान देवे तो वह दान दाताका परिणामके अनुसार मुख्य रूपसे अनुकम्पादान है। इसमें भी जो लोग धर्मदानके सिवाय नौ दानोंको अधर्ममें मानते हैं उनके हिसाबसे अधर्म होना चाहिये । उवाई सूत्रमें लोकोपचार विनय के "काय्रांहेतु" और "कृतप्रतिक्रिया” नामक दो भेद कहे गये हैं । “यदि गुरुजीको भात
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