________________
दानाधिकारः।
११९
-
-
-
कायम होता है इसके विपरीत उपकारीको उपकारका बदला न चुकाना धर्म और उपकार का बदला न चुकानेवाला कृतघ्न पुरुष धार्मिक सिद्ध होता है परन्तु यह बात लोक और शास्त्र दोनों ही से विरुद्ध है शास्त्र और शिष्ट पुरुष कृतज्ञको पापी और कृवन्नको धार्मिक कदापि नहीं कह सकते यह तो जीतमलजीकी ही अलौकिक प्रतिभा है जो कृपज्ञ को पापी और कृतघ्नको धार्मिक कायम करती है । वास्तवमें इन दश दानोंके गुणानुसार नाम रक्खे गये हैं इसलिये एक अधर्मदान ही अधर्म है उससे भिन्न दान अधर्मदान नहीं हैं कितु नामानुसार उनके गुण हैं भोषणजीने भी इन दानों के नाम गुण निष्पन्न कहे हैं अतः धर्मदानको छोड़ कर शेष नौही दानोंको अधर्मदानमें कायम करना अज्ञानका परिणाम है।
(बोल दसवां)
(प्रेरक)
भ्रमविध्वंसन कार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ७८ पर लिखते हैं
'एनव दान चार विसामा बाहिरे छ । धर्मदान विसामा माहि छै । एन्याय तो चतुर हुवे तो ओ लखे इनके कहने का तात्पर्य यह है कि गृहस्थ जीवों को सावध कर्मों का भार उतार कर विश्राम करनेके लिये चार स्थान रहे हैं। वे ये हैं-बारह व्रत ग्रहण, सामायक देशावकाशिक व्रत, पौषधोपवास और संथारा सल्लेखना द्वारा पण्डित मरण प्राप्त करना, इन विश्राम स्थानों में एक धर्मदान ही शामिल होता है शेष नौ दान नहीं होते अतः वे अधर्मदान हैं। इसका समाधान क्या है ? (प्ररूपक)
जो क्रिया विश्राम स्थ नसे बाहर है उसे एकान्त पापमें बताना मूर्खता है क्योंकि मिथ्यादृष्टियोंकी सभी क्रियाएं विश्राम स्थानोंसे बाहर ही होती हैं तो भी वे अपनी क्रियाओंसे पुण्य संचय करके स्वर्गगामी होते हैं यदि विश्राम स्थानसे बाहर की सभी क्रियाएं एकांत पापमें होती तो मिथ्यादृष्टि विश्राम स्थानसे बाहरकी क्रिया करके उसके द्वारा स्वर्गगामी क्यों होता ? क्योंकि ऊपर कहे हुए चार विश्राम स्थान सम्यष्टियोंके हैं मिथ्यादृष्टियोंके नहीं यह बात निर्विवाद है ऐसी दशामें विश्राम स्थानोंसे बाहर की क्रियाओंको एकान्त पापमें कायम करना मूर्खताके सिवाय और कुछ नहीं है।
(बोल ग्यारहवां) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसन कार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ७८ पर लिखते हैं:-'अठ दश धर्म दश स्थविर कह्या पिण सावध निरवध ओलखणा, अने दश दान कह्या ते पिण सावध निरवद्य पिछाणणा । धर्म भने स्थविर वह्या छै पिण लोकिक लोकोचर दोन छै जिम जम्बद्वीप
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com